आज कल अभिभावक होना बहोत ही कठिन हो गया हैं. क्यों की बच्चों की मानसिकता समझ पाना काफी कठिन हो गया हैं. अभिभावकों को काफी कंट्रोल करना पड़ता हैं खुद पर और बच्चों पर भी. आजकल बच्चों को छूट देना भी महँगा पड सकता हैं. पहले बच्चों को शिक्षा के तौर पर मारा जाता था या उन्हें भूखा रखा जाता था या उन्हें इस तरह ट्रीट किया जाता था के उन्हें समझ आने लगे किन्तु आजकल यह करना काफी डरावना हो गया हैं. यह इसलिए के आजकल के बच्चे इंटरनेट से इतने जुड़े हैं के इस स्थिति में वह इस बात का गलत मतलब निकाल के कुछ भी कर सकते हैं. यानि वह इतने सजग हो गए हैं वह समझ चुके हैं के हम इस तरीके से अभिभावकों को मना ले सकते हैं. चाहे वह तरीका गलत हो या सही हो. उन्हें इंटरनेट के जरिये यह पता ही नहीं चलता के जो तरीका वह अपना रहे हों वह क्या गुल खिलाएगा. बच्चों को अगर हम किसी चीज़ के लिए मना करते हैं तो वह यह समझते हैं के वह उनसे प्यार नहीं करते या वह उन्हें नज़र अंदाज़ कर रहे हैं. अगर बच्चा किसी चीज़ के लिए जिद करता हों और हम उन्हें नहीं देते हैं तो वह उसे बुरा मानते हैं. किन्तु हम ऐसे में यह भूल जाते हैं बार बार मना करने से हम भी ज़िद्दी हो गए हैं. इसलिए ऐसे में बच्चों को विश्वास में लेके उन्हें समझाना जरुरी हैं. किसी बात के लिए हम उन्हें नहीं देने की स्थिति में क्यों हैं या हम किसलिए मना कर रहे हैं यह समझाना जरुरी हो गया हैं. ऐसे में अगर एक बार वह समझ गए तो यह काफी हद तक मुमकिन हैं के बच्चे वह बात दुबारा ना करे. अगर वह बात दोबारा बच्चे करे तो हमें मौन रहना चाहिए हो सकते हैं के हमारे मौन से वह यह बात समझ ले और आगे वह गलती ना करे. मतलब हमारा मौन भी कारगर सिद्ध हो सकता हैं. इसलिए शिक्षा के तौर पर भूखा रखना या मारने के बजाय हमें शांत तौर पर उन्हें समझाके उनकी गलती का एह्सास करके देना ही उनकी परवरिश की सच्ची नींव रखना होगा।
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