एक अस्वस्थ नेता
जब पहली बार
आप पार्टी ने चुनाव जीता था तो वह काबिले तारीफ और एतिहासिक था । इतने साल
काँग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित का राज खत्म करके दिल्ली में राज करना अपने आप
में काबिले तारीफ ही था। तब आप के मेंबरो
ने और खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सब सुविधा को नकार कर दिल्ली मेट्रो से
सफर करना और संसद में अपनी ही गाड़ी से आना लोगों को बहोत भा गया। इनके सादेपन की सारी दिल्ली कायल हो गई। किन्तु कुछ ही दिनों में सच्चाई सामने आने
लगी। अपने एक मंत्री के समर्थन में
केजरीवाल धरने पर बैठ गए। ये देश के
इतिहास में पहली बार हो रहा था जब एक राज्य का मुख्यमंत्री अपने मंत्री के बचाव
में खुद धरने पर बैठा हों। बाद में
केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया।
बाद में चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होने फिर लोगों से खुद को चुनाव में जीतकर
लाने की गुजारिश की। लोगों ने भी उन्हे
भारी मतों से चुनाव जी जितवाया। अरविंद
केजरीवाल फिर मुख्यमंत्री बने। अब की बार
उन्होने सारी सुख सुविधा लेना शुरू किया।
आजकल वह किसीपर भी कोई इल्जाम लगा रहे हैं। पहले उन्होने केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री श्री
नितिन गडकरी जी पर आरोप लगाए। जब गडकरी जी
ने उनको आरोप सबूत के साथ सिद्ध करने की बात कही तो वह साबित नहीं कर सके। बाद में वह मामला शांत हो गया। किन्तु आजकल केजरीवाल प्रधानमंत्री श्री
नरेंद्र मोदी जी पर यह आरोप लगा रहे हैं की वह उन्हे सही तरीके से काम करने नहीं
दे रहे हैं। जबकी मोदी जी सारे देश के
प्रधानमंत्री हैं जबकी केजरीवाल सिर्फ एक राज्य के मुखमंत्री हैं। एक बीजेपी नेता ने एक लिस्ट जारी की हैं जिसमे
केजरीवाल के सारे मंत्रियों की शैक्षनिक पात्रता का ब्योंरा दिया गया हैं। आजकल एक नया मामला गरमाया हैं वह हैं उनके
एक्कीस आमदारों के ऊपर लटकती हुई अपात्रता की तलवार। इन्हे केजरीवाल ने संसदीय सचिव का दर्जा देकर
नियुक्त किया हैं। किन्तु घटना के अनुसार दिल्ली
के कुल आमदार के संख्या के अनुपात में दस प्रतिशत के ऊपर सदस्यों को संसदीय सचिव
के तौर पर नियुक्त नहीं कर सकते। और जिस
राज्यों ने पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा आमदारों को संसदीय सचिव नियुक्त किया हैं वह
भी विवादों में हैं तथा न्यायप्रविष्ट हैं।
क्यों की यह पद लाभ के पद के व्याख्या के अंदर आता हैं यानी इस पद से
संसदीय सचिवों को लाभ होता हैं। एक साथ दो
लाभों के पद पर बने रहना घटना के खिलाफ हैं इसलिए केजरीवाल सरकार के उन एक्कीस मेंबेरो पर कारवाई होना तय हैं। इसलिए केजरीवाल सरकार ने एक विधेयक पारीत कर
अपने मेंबेरो पर होने वाली कारवाई को टालने का प्रयास किया हैं किन्तु उस विधेयक
को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया। किन्तु
उसका भी दोषी केजरीवाल ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को ही ठहराया
हैं। लेकिन शायद उन्हे यह मालूम नहीं हैं
की इसकी शुरुवात मार्च महीने में ही हो गयी थी जब दिल्ली के एक वकील ने आमदारों की
इस तरह की नियुक्ति पर जनहित याचिका दायर की थी।
इसके चलते चुनाव आयोग ने सभी आमदारों से इसके बारे में सफाई देने को कहा
था। किन्तु कुछ आमदारों ने तो हम प्रशिक्षणार्थी हैं और किसी तरह का लाभ न लेते
हुए सरकार का काम कर रहे हैं इस तरह की दलील पेश की। किन्तु सच्चाई तो यह हैं के कुछ आमदारों को
दिल्ली सरकार के सचिवालय में अलग रूम दिये गए हैं और उन्हे कुछ कर्मचारी भी मुहैया
कराये गए हैं। अगर ऐसे में खुद को
प्रशिक्षणार्थी घोषित करते हैं तो उसे मानने में केजरीवाल सरकार को कोई कमीपन
महसूस होने की जरूरत नहीं थी किन्तु उसे भी केजरीवाल सरकार ने नकारा और खुद ही खुद
को एक सन्देह के कतगाहरे में खड़ा पाया। अब
देखते हैं के आनेवाले वक्त में क्या होता हैं।
अगर इसी तरह के झुटे और मनगढ़ंत आरोप केजरीवाल औरों पर लगाते रहे तो वह दिन
दूर नहीं जब वह पहले की तरह धरने पर बैठे हुए नजर आएंगे।
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