फिल्म और यतार्थ
कहते है के सिनेमा हमारे जीवन का आइना होता है। जो जीवन में घटता हैं वही सिनेमा में दिखाया जाता हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले हमारे एक प्रतितयश निर्देशक पर हमला हुआ। क्यों की वह ऐतेहासिक विषय पर फिल्म बना रहे थे। हम कहते है के हमारी फिल्मे दुनिया में फेमस हैं क्यों की हम दुनिया को सही बाते दिखाते हैं। तो फिर उन पर हमला क्यों हुआ। एक समुदाय कह रहा था के वह इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। किन्तु फिल्म आने के पहले आप कैसे अंदाजा लगा सकते हैं के उन्होंने इतिहास के साथ छेड़छाड़ की हैं। इसका फैसला करने के लिए सेंसर बोर्ड हैं। किन्तु आजकल हर समाज अपनी अपनी सेंसर बोर्ड चलाने की कोशिश कर रहा हैं। अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब फिल्मकारों के पास विषय वस्तु ही नहीं बचेगा फिल्म बनाने के लिए। अगर हम स्वंतत्रता से फिल्म बना नहीं सकते तो फिल्म बनाने का फायदा क्या। हम हिंसा नहीं चाहते सच्चाई नहीं दिखा सकते किसी के ऊपर टिपण्णी नहीं कर सकते तो फिर किस तरह की फिल्मे बनाये। काल्पनिक भी बनाते हैं तो उसमे भी कोई न कोई नुक़्स निकाले जाते हैं। हमारे फिल्म का एक मजबूत पक्ष संगीत हैं। किन्तु उसमे भी कोई थोड़ा हटके कहना चाहे तो उसे भी बंद किया जाता हैं। अब गीत चोली के पीछे क्या है इसे ही ले लीजिये उसमे कोई भी अश्लील नहीं किन्तु उसे भी बंद करने की कोशिश गयी। देवदास, बाजिराव मस्तांनी , या अभी बनने की पहले ही पद्मावती पे लोगोने बंदी लगाने की बात की हैं। इसलिए हम किसी को खुद जज नहीं कर सकते अगर आप नहीं देखना चाहते हैं तो उसे मत देखिये वह अपने आप ही बंद हो जायेगी किन्तु उसके लिए किसी पे हमला या हिंसा करना कहा का न्याय हैं। हर उस चीज़ पे किसी ना किसी को आपत्ति होंगी तो उसे दर्शाने का शांतिमय तरीका भी है। किन्तु उसके लिए हिंसा का मार्ग उचित नहीं हैं।
कहते है के सिनेमा हमारे जीवन का आइना होता है। जो जीवन में घटता हैं वही सिनेमा में दिखाया जाता हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले हमारे एक प्रतितयश निर्देशक पर हमला हुआ। क्यों की वह ऐतेहासिक विषय पर फिल्म बना रहे थे। हम कहते है के हमारी फिल्मे दुनिया में फेमस हैं क्यों की हम दुनिया को सही बाते दिखाते हैं। तो फिर उन पर हमला क्यों हुआ। एक समुदाय कह रहा था के वह इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। किन्तु फिल्म आने के पहले आप कैसे अंदाजा लगा सकते हैं के उन्होंने इतिहास के साथ छेड़छाड़ की हैं। इसका फैसला करने के लिए सेंसर बोर्ड हैं। किन्तु आजकल हर समाज अपनी अपनी सेंसर बोर्ड चलाने की कोशिश कर रहा हैं। अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब फिल्मकारों के पास विषय वस्तु ही नहीं बचेगा फिल्म बनाने के लिए। अगर हम स्वंतत्रता से फिल्म बना नहीं सकते तो फिल्म बनाने का फायदा क्या। हम हिंसा नहीं चाहते सच्चाई नहीं दिखा सकते किसी के ऊपर टिपण्णी नहीं कर सकते तो फिर किस तरह की फिल्मे बनाये। काल्पनिक भी बनाते हैं तो उसमे भी कोई न कोई नुक़्स निकाले जाते हैं। हमारे फिल्म का एक मजबूत पक्ष संगीत हैं। किन्तु उसमे भी कोई थोड़ा हटके कहना चाहे तो उसे भी बंद किया जाता हैं। अब गीत चोली के पीछे क्या है इसे ही ले लीजिये उसमे कोई भी अश्लील नहीं किन्तु उसे भी बंद करने की कोशिश गयी। देवदास, बाजिराव मस्तांनी , या अभी बनने की पहले ही पद्मावती पे लोगोने बंदी लगाने की बात की हैं। इसलिए हम किसी को खुद जज नहीं कर सकते अगर आप नहीं देखना चाहते हैं तो उसे मत देखिये वह अपने आप ही बंद हो जायेगी किन्तु उसके लिए किसी पे हमला या हिंसा करना कहा का न्याय हैं। हर उस चीज़ पे किसी ना किसी को आपत्ति होंगी तो उसे दर्शाने का शांतिमय तरीका भी है। किन्तु उसके लिए हिंसा का मार्ग उचित नहीं हैं।
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