पुलिस कस्टडी में मौत
आज हमारे देश में पुलिस लॉकअप में होनेवाली मौतों में बढ़ोतर्री होने लगी
हैं। इसे संयुक्त राष्ट्र ने भी गंभीरता
से लिया हैं। युद्ध या सदृश परिस्थितियों या इमेर्जेंसी के समय में भी इस
तरह की मौतों का समर्थन नहीं किया जा सकता हैं।
भारतीय राज्यघटना यानि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार हर व्यक्ति को
जीने का तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया हैं। इसलिए किसिकों अरैस्ट
किया गया तो भी उसे पूर्णतया कानूनी संरक्षण प्रदान करना सरकार की ज़िम्मेदारी
हैं। ऐसे समय में लॉकअप में होनेवाली
इंक्वैरि या किसी भी प्रकार की अमानवीय हरकत को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जाएगा
। सूप्रीम कोर्ट के इस बयान के बावजूद लॉकअप में होनेवाली मौतों में कमी नहीं आई
हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के
अनुसार इस में महाराष्ट्र सबसे आगे हैं।
इस तरह की मौतों में कमी होने के लिए न्यायालय ने सभी पुलिस थानों में
सीसीटीवी केमेरे लगाने की शिफारस की हैं।
किन्तु सभी पुलिस थानों की बात छोड़ो सरकार ने तो संवेदनशील थानों में भी
सीसीटीवी केमेरे नहीं लगाये हैं।
अगर हम इस बात पे गौर करे की यह मौतें होती ही क्यों हैं तो इस के पीछे का
सबसे पहला कारण ध्यान में आता हैं वो यह हैं की जब गुनहगार को पुलिस पकड़ती हैं तो
उसे इतनी मानसिक यातनाएं दी जाती हैं की वह आत्महत्या करने की कोशिश करता
हैं। इसमे ज़्यादातर गरीब,कम पढे
लिखे या अशिक्षित लोगों का ही भरना होता हैं। इन्हे किसी भी प्रकार का कोई राजकीय
सपोर्ट नहीं होता हैं। इसलिए जब उनके घर
पर पुलिस पहुँचती हैं तो वैसे ही डर के कारण मानसिक तौर पर अधमरे हो जाते हैं। उस पर पुलिस का रवैया उनको और अंदर से तोड़ देता हैं। मैं यह नहीं कहता के हर आरोपी निर्दोष होता हैं।
लेकिन सिर्फ शक की बिनाह पे किसी को बंदी बनाया जाता हैं तो उसे सचमुच मानसिक धक्का
तो लगेगा ही। जब हमारे देश में ब्रिटिश राज
था तो उस समय आज की तरह आधुनिक तंत्रज्ञान नहीं था तो गुनहगार को मार के उससे गुनाह
कबुल करना शॉर्ट कट माना जाता था, किन्तु आज के जमाने में इतने
आधुनिक रास्ते हैं की आरोपी को बिना तकलीफ दिये ही सच्चाई का पता लगाया जा सकता हैं। जिसमे नारकोटिक टेस्ट जैसे साधन भी हैं। इसलिए आज पुलिस का समुपदेशन करना तथा उन्हे उचित
प्रशिक्षण देना जरूरी हैं। ताकि पुलिस कस्टडी
में होने वाली मौतों को टाला जा सके।
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