Tuesday, 7 March 2017

अपना पुरस्कार


अपना पुरस्कार 

कहते हैं की फिल्म जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार ऑस्कर माना जाता हैं।  क्योंकि यह इतनी बड़ी प्रक्रिया से 
गुजरता हैं की इसे देने के पहले बहोत बड़ी बारीकी से छानबीन होती हैं।  किन्तु इस साल पहले एक फिल्म 'ला ला लैंड'  का नाम घोषित हुआ और निर्माता अपने कलाकारों के साथ मंच पर भी आ गए तब उदघोषकों  को अपनी भूल का पता चला और " मूनलाइट " को श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार दिया गया।  अब इतनी बड़ी गलती हो और मीडिया में ना छाये तो बात ही क्या।  मतलब अब ऑस्कर की प्रतिष्ठा काम हुई ऐसा मानना चाहिए क्या। नहीं यह तो महज एक भूल थी।  किन्तु हमारे देश की  किसी भी  फिल्म को विदेशी श्रेणी में भी श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार नहीं मिला हैं।  कोई कहता हैं के हमारे देश की किसी फिल्म को ऑस्कर नहीं मिला तो क्या  हुआ।   क्या  हमारे देश के पुरस्कार कम हैं क्या।  कतई नहीं ,  हमारे देश के पुरस्कार कम नहीं हैं, किन्तु जिस तरह से हमारे देश के हर पुरस्कार पे सवालिया निशान लगते हैं , तो उससे तो अब हर पुरस्कार को लोग संदेह की नजर से देखने लगे हैं।  किन्तु ऑस्कर की अपनी एक प्रतिष्ठा हैं।  ऑस्कर के लिए फिल्मे सारा समय सिनेमाघरों में दिखाई जाती हैं और जूरी मेंबर को सिनेमाघर के प्रवेश द्वार पर अपना पहचान पत्र पंच करना होता हैं मतलब हर मेंबर को फिल्म देखना जरुरी होता हैं, और किसी भी सदस्य द्वारा फिल्म अधिकृत सिनेमाघर में नहीं देखे जाने पर उसका वोट अमान्य कर दिया जाता हैं।   ऐसी ही प्रक्रिया अगर हमारे देश के हर पुरस्कार के लिए अपनाई जाती तो किसी भी पुरस्कार पर ऊँगली नहीं उठती।  ऑस्कर में पुरस्कार पाने वाली फिल्मे हमारी परिप्रेक्ष्य के हिसाब से नहीं होती हैं वह गीत विरहित होती  हैं, जबकि हमारी फिल्मों का गीत संगीत एक अभिन्न अंग हैं।  हमारी फिल्में गीत संगीत के साथ पारिवारिक ड्रामा और सामजिक परिप्रेक्ष्य से भरपूर होती हैं, जिसमे नायक, खलनायक, मेलोड्रामा, एक्शन और बहोत सा मसाला भी होता हैं।  इसके विपरीत विदेश की फिल्में  होती हैं।  क्या ऑस्कर नहीं मिलने से हमारी फिल्में किसी मामले में कम तो नहीं।  हमारे यहाँ  मदर इंडिया, दो बीघा जमीन जैसी सुन्दर और सामाजिक दृष्टी से श्रेष्ठ फिल्में भी बनी हैं।  आज आलम यह हैं की विदेशी कलाकार भी भारतीय फिल्मों में अभिनय करते हुए दिखाई दे रहे हैं। हमारे फिल्मकारों को विदेशी धरती पर सन्मानित किया जाने लगा हैं।   इसलिए सिर्फ ऑस्कर के लिए फिल्में बनाने लगे तो अवार्ड मिलेगा किन्तु  देश के अनुसार न बनने के कारण वह फिल्म लोकाश्रय पाने से वंचित रह जायेगी।  इसलिए हमारे देश के फिल्मकारों ने सिर्फ अपनी शैली के अनुसार फ़िल्में बनानी चाहिए ताकि वह लोकाश्रय भी पा सके और अगर सराहनीय रही तो ऑस्कर मिलने से उसे कोई रोक नहीं सकता। 


No comments:

Post a Comment