पंडित बिस्मिल्लाह खान- जिन्हें हम उस्ताद के नाम से जानते हैं, वे अमीरुद्दीन
खान थे । जिन्होंने शहनाई को राजाश्रय का दर्जा दिलाया । या हम यूँ कहे के जिसे हम सिर्फ मातम के समय का जीवन के आखरी पड़ाव में ही सुनते थे या बजाया करते थे या यूँ कहे के जिसे कुछ रस्मो रिवाजो में ही बजाया जाता था उन्हें शादी में बजाने का श्रेय पंडित बिस्मिल्लाह खान साहब को ही जाता हैं । उसे स्टेज तक लाने का श्रेय भी पंडित बिस्मिल्लाह
खान साहब को ही जाता हैं ।इन्हें भारत रत्न की उपाधि से सन २००१ में नवाजा गया । एम एस सुब्बलक्ष्मी
और पंडित रवि शंकर के बाद आप तीसरे ऐसे शास्त्रीय संगीतकार हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिला हैं । पंडित जी का जन्म भोपाल के एक शिया मुस्लिम घर २१ मार्च १९१६ को हुआ। जब इनका जन्म हुआ तब इनके दादाजी ने बिस्मिलाह कहा और उसी के अनुसार अमीरुद्दीन खान का नाम बिस्मिल्लाह
पड़ा ।इनके परदादा और दादा डुमराव पैलेस में संगीतज्ञ थे । वह नगारखाना बजाते थे । इनके पिताजी डुमराव संस्थान में महाराजा केशव प्रसाद सिंह के यहाँ शहनाई बजाते थे ।उम्र के छटवे साल पंडित जी वाराणसी में दाखिल हुए । यही पर उनकी शहनाई की शिक्षा प्रारंभ हुई । इनका ही शहनाई पर एकाधिकार हैं यह कहना कोई अतिशयोक्ति
नहीं होगी । १९३७ के ऑल इंडिया म्यूजिक कॉन्सर्ट में शहनाई बजाई और वाहवाही बटोरी । वह शहनाई को अपनी बेगम कहते थे । इनके देहांत के बाद इनकी शहनाई को भी इनके साथ दफनाया गया था । १९४७ में पंडित बिस्मिल्लाह खान साहब ने भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर दिल्ली के लाल किले पर शहनाई बजाई थी । १९५० से हर बार १५ अगस्त को इनके शहनाई के कार्यक्रम की प्रस्तुति दूरदर्शन पर होती थी । पंडित बिस्मिल्लाह खान साहब ने राजेंद्र कुमार अभिनीत गूँज उठी शहनाई में शहनाई बजाई थी । तेरे सुर और मेरे गीत दोनों मिलके बनेगी प्रीत ये सुरीले गाने इसी फिल्म के थे।
उन्होंने राजकुमार अभिनीत कन्नड़ फिल्म सनादि अप्पन्न में भी शहनाई बजाई थी । उनके पुत्र नाज़िम हुसैन और नय्यर हुसैन भी काफी अच्छी शहनाई बजाते है ।ऐसे महान शास्त्रीय संगीतकार का २१ अगस्त २००६ को वाराणसी में निधन हुआ । इनको २१ तोफों की सलामी के साथ इनकी शहनाई के साथ वाराणसी में नीम के पेड़ के तले दफनाया गया । ऐसे महान शास्त्रीय संगीतकार को हमारा शत शत नमन ।
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