कहते हैं हमारे मरने के बाद हमारा शरीर मिटटी हो जाता या मिटटी में मिल जाता हैं , और यह सच भी हैं । हमारे मरने के बाद इस शरीर का तो कुछ भी मोल नहीं हैं । जीते जी हम इससे कितना संवारते हैं सजाते हैं । हर किसी की यह चाहत रहती हैं के हम सबसे अलग सबसे सूंदर दिखे । किन्तु यह कभी संभव होता हैं तो कभी असंभव । किन्तु यह जीते जी ही होता हैं । मरने के बाद हम सिर्फ चार कंधे पर ही जाते हैं चाहे वह कितना भी सूंदर या धनवान हो , आखिर उसे मिटटी में मिलना होता हैं । फिर भी हम इस शरीर का कितना मोह करते हैं । किन्तु क्या हमने कभी उन लोगों के बारे में सोचा हैं जीने जीने के लिए हाथ, पैर और शरीर के बाकी अंगों की जरुरत होती हैं किन्तु उन्हें वह नहीं मिलते मसलन चलने के लिए पैर, लिखने के लिए हाथ, देखने के लिए नेत्र, और जीने के ह्रदय , किन्तु यह उन्हें नसीब नहीं होता जीने यह चाहिए । तो क्या ऐसे लोगों को हम जीने का मौका नहीं दे सकते । हाँ दे सकते हैं हमारे अंगदान करके । किसी व्यक्ति को अंगदान के बारे में विस्तार से समझाने के लिए और अंगदान को बढ़ावा देने के लिए सरकारी संगठन और दूसरे व्यवसायों से सम्बंधित लोगों द्वारा हर वर्षा १३ अगस्त को भारत में अंग दान दिवस मनाया जाता हैं । एक रिपोर्ट के अनुसार किसी भी समय किसी व्यक्ति के मुख्या क्रियाशील अंग के खराब हो जाने के कारण प्रति वर्ष कम से कम ५ लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत हो जाती हैं । इसलिए यह जरुरी हैं हम सबने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए शरीर का कम से कम एक दान करना चाहिए । सबसे पहले हम देखते हैं के कौन कौनसे अंग दान कर सकते हैं जो मृत्युपरांत या ब्रेन डेथ होने के बाद कर सकते हैं । यह अंग हैं - किडनी, फेफड़ा,
ह्रदय, आँख,
कलेजा, पाचक ग्रंथि, आँख की पुतली की रक्षा करने वाला सफ़ेद सख्त भाग , आंत,
त्वचा ऊतक, अस्थि ऊतक, ह्रदय छिद्र , नसें । हमारे सामाजिक मान्यताओं के कारण अभी भी हमारा देश अंगदान के बारे में इतना जागरूक नहीं हुआ हैं । हर साल मेडिकल के विद्यार्थीयों को परिक्षण करने के लिए आदमी के शरीर की जरुरत होती हैं किन्तु हमारे समाज के मान्यताओं के कारण अंगदान करना संभव नहीं हो पाता हैं । हमारे सामाजिक मान्यताओं के हिसाब से जब तक हमारा शरीर अग्नि के साथ जल नहीं जाता या मिटटी में दफ़न नहीं होता तब तक हमारे आत्माओं को शान्ति नहीं मिल सकती । इसी सोच के कारण अंगदान में काफी कठिनाइयां आ रही हैं । अगर हम बाकी अंग दान नहीं कर सकते तो कमसे कम नेत्रदान तो करना ही चाहिए । क्यों की मरने के बाद हमारा शरीर तो मिटटी ही होने वाला हैं ऐसे में हमारे नेत्र द्वारा किसी को ज्योति मिले इससे बेहतर और क्या हो सकता हैं । वैसे भी नेत्रदान करने से हमारे शरीर को कोई भी हानि नहीं पहुँचती हैं और हमारा शरीर भी वैसे ही रहता हैं । वैसे भी अभी नेत्र दान के बारे में लोगों में जागरूकता आ रही हैं । इसलिए हर एक व्यक्ति ने नेत्र दान तो करना ही चाहिए । इसलिए चलिए और आज ही अंगदान के बारे में सोचे और १३ अगस्त से पहले शरीर का अंगदान करने का प्रण ले और किसी और की जिंदगी में मुस्कराहट लाये ।
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