३१ मई को तम्बाखू रहित दिन मनाया जाता हैं । यह भारत में उगने वाली एक वनस्पति हैं । जिसे सुखाने के बाद चुना मलकर इसे खाया जाता हैं । इसके साथ गुटखा बनता हैं । तम्बाखू एक नशादायक पदार्थ हैं । इसे बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, हुक्का, चिरुट,
सिगार में इस्तेमाल करते हैं तथा इसे चुने के साथ और पान में भी इसे मिलाकर खाया जाता हैं । कहते हैं फ्रांस के पोर्तुगाल में स्थित राजदूत जॉ निको ने इसे १५६० में बेल्जियम के एक व्यापारी के तरफ से तम्बाखू खरीद ली और उसे फ्रांस के रानी को भेट दी । तम्बाखू वनस्पति के जिस तंतु से उत्पन्न होती है उसे जॉ निको के स्मृति हेतु " निकोटिआना " ऐसे नाम दिया गया । निकोटिन यह किटकनाशक भी हैं । निकोटिन बहोत जल्दी रक्त के अंडर घुलता हैं । निकोटिन त्वचा से तो बहोत जल्दी शरीर में घुलता हैं , किन्तु उसे धूम्रपान के धुएं से या तपकीर द्वारा सांसो में छोड़ा तो वह बहोत ही जल्दी रक्त के अंडर समाता हैं । रक्त प्रवाह में मिलने के कारण वह सिर्फ १०-२० सेकंड में ही पुरे शरीर में घुल मिल जाता हैं और वह दिमाग में पहुंचकर नशा होने का एहसाह कराता हैं । निकोटिन रक्त के अंदर समाने के बाद हमे नशा चढ़ने का एहसाह कराता हैं । यही परिणाम कुछ देर बाद जब शुद्ध रक्त शरीर में आता हैं तब थोड़ा कम होता हैं । इसी का एहसाह करने के लिए फिर से नशा करते हैं किन्तु यही सेवन करने की भावना और आदत हमें इसकी लत लगाती हैं । निकोटिन के लत वाले लोगों में अल्झायमरस, स्किझोफ्रेनिया इस तरह के दिमागी रोग के प्रमाण भी ज्यादा रहते हैं । फेफड़े का कैंसर सिगरेट से तथा मुँह का कैंसर तम्बाखू खाने से होता हैं । तम्बाखू के सेवन से हर साल ७ लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती हैं ऐसा वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन का रिपोर्ट हैं । भारत में पाया जानेवाला तम्बाखू " निकोटिआना टब्याकम" इस जातीका होता हैं जबकि "निकोटिआना रास्तिका " इसमें निकोटिन का प्रमाण भारतीय तम्बाखू से ज्यादा होता हैं । निकोटिन की उत्पति तम्बाखू के पौधे के जड़ में होता हैं । तो आइये , उठिये हम सब मिलकर ३१ मई को तम्बाखू रहित दिन मनाते हैं और इस दिन यह प्रण करते हैं के हम इस का सेवन नहीं करेंगे और जो सेवन करते हैं उन्हें यह लत छुड़ाने में मदद करेंगे ।
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