कहते हैं विवाह एक पवित्र बंधन हैं । जिसे सभी धर्मों ने माना हैं । जिस तरह इसे हम बंधन मानते हैं तो तो बंधन इतने जल्दी तोड़े भी नहीं जाते चाहे वह कच्चे धागो का बंधन हो या शादी का । किन्तु मुस्लिम समाज में पल रहे तीन तलाक के बारे में आज कल जो बहस चल रही हैं उसे देखते ये कहना होगा के यह बंधन सच में पवित्र रहा हैं के नहीं । हम यह इसलिए कह रहे हैं के मुस्लिम समाज में जिस तरह से तीन तलाक कहकर पत्नी को छोड़ा जा रहा हैं वह गलत हैं । कोई कहता हैं के यह धर्म के साथ जुड़ा हैं , किन्तु अगर यह धर्म के साथ जुड़ा होता तो मुस्लिम बहुल देशों ने भी इस पर रोक नहीं लगाई होती । कहने का मतलब हैं के यह तीन तलाक मुस्लिम महिलाओंके के प्रति अन्याय हैं । हमारे देश में अभी इस पर बड़ी जोरदार बहस चल रहीं हैं । सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल देना पड रहा हैं । इसलिए कोर्ट ने सीधा कहा हैं के अगर ये तीन तलाक मुस्लिमों का धार्मिक मामला निकला तो इसमें दखल नहीं देगा । इसका फैसला करने के लिए कोर्ट ने पांच अलग अलग धर्मों के जजों को नियुक्त किया हैं , ताकि फैसले पे सवाल ना उठे । इस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक सुनवाई शुरू की हैं । कोर्ट यह जाँचेंगा के तीन तलाक मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का हिस्सा हैं या नहीं । यह सुनवाई लगातार १० दिन तक चलेगी । पहले तीन दिन तीन तलाक को चुनौती देने वाले अपना पक्ष रखेंगे और फिर इसका बचाव करने वाले । मामले से जुड़े विभिन्न पक्षों को बेंच द्वारा तक दो सवालों पर जिरह के लिए दो दिन मिलेंगे । एक दिन प्रतिवाद के लिए मिलेगा । इसमें चीफ जस्टिस जे यस खेहर-सिख, जस्टिस कुरियन जोसेफ - ईसाई, जस्टिस आर एफ़ नरीमन-पारसी, जस्टिस यू यू ललित- हिन्दू, और जस्टिस अब्दुल नजीर -मुस्लिम सुनवाई कर रहे हैं । अब देखना हैं के हमारे देश की महिलाओं के साथ न्याय होता हैं या अन्याय। किन्तु यह मामला नाजुक होने के कारण इसपे फैसला आने के बाद भी बहोत सावधानी बरतनी पड़ेगी । किन्तु हमारा देश इसे समझदारी से लेगा इसमें कोई शक नहीं । आखिर सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा ।
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