Thursday, 23 February 2017

शादी या बर्बादी

शादी या बर्बादी
कहते हैं के शादी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं . इसमें हम दिल खोलकर खर्च करते हैं और दिल खोलकर मस्ती भी करते हैं . यह इसलिए भी क्योंकि हम शादी एक बार ही करते हैंहमारे देश का रिवाज़ ही ऐसा हैंकिन्तु हम कभी यह सोचते हैं के इस शादी किस किस चीज़ की बर्बादी होती हैंइसमें सबसे पहले होती हैं खाने की बर्बादी . हम देखते हैं के लोग खाना खाने के बजाय बर्बाद ज्यादा करते हैंऔर इसमें पैसो की बर्बादी होती हैं वह अलगअगर हम इन सबपे रोक लगाए तो कैसा रहेगाकिन्तु आजकल ज़माना दिखावे का हैंतो हर एक आदमी चाहता हैं के वो शादी में कुछ ऐसा करे के जिससे उसे सब याद रखेंकिन्तु उसमे वह यह भूल जाता हैं के इस कारण कितने पैसो की और उस अमूल्य अनाज की बर्बादी होती हैंजिसे उगाने में हमारे किसानों का कितना पसीना बर्बाद होता हैंकिन्तु इसमें सोचने को किसीके पास समय ही नहीं हैंकहते हैं के हमारा पैसा बर्बाद हो रहा हैं आपको क्याकिन्तु यह बात वह सोचता नहीं के दो वक़्त की रोटी पाने के लिए आदमी को कितना संघर्ष करना पड़ता हैंऔर इसके लिए कोई क़ानून भी नहीं हैं जिसके कारण हम दोषी आदमी पर करवाई कर सके  किन्तु अब यह संभव होते दिख रहा हैंहमारे देश का  जम्मू और कश्मीर ऐसा पहला राज्य बन गया हैं जो की इस तरह के शादियों और छोटे आयोजनों में फिजूलखर्ची रोकने के लिए दिशा निर्देश जारी किये हैंइसे नहीं मानने पर सजा होंगी
अब ऐसे करने होंगे आयोजन
* लड़की की शादी में ५००, लड़के की शादी में ४०० और छोटे फंक्शन में १०० से ज्यादा मेहमान नहीं बुला सकते. इनविटेशन कार्ड्स के साथ ड्राई फ्रूट्स , मिठाई और कोई गिफ्ट नहीं भेज सकते.
* नॉन-वेज के और वेज के डिशेश से ज्यादा नहीं परोस सकतेमिठाई और फलों के दो से ज्यादा स्टाल्स नहीं रख सकते
* एम्पलिफिएर्स और लाऊड स्पीकर्स नहीं बजा सकते ही आतिशबाजी कर सकते हैं
कच्चे या पके खाने की बर्बादी नहीं करनी हैं अगर कुछ बचता हैं तो उसे फेंक नहीं सकते जरुरतमंदो या वृद्धाश्रमों में देना होगा.
यह व्यवस्था अप्रैल २०१७ से पुरे जम्मू और कश्मीर राज्य में लागू हो जाएँगी   सरकार द्वारा बनाये गए दिशा निर्देशों का सकती से पालन हो इसकी जिम्मेदारी जिलाधिकारियों की होंगी उन्हें आदेश दिया गया हैं की इन निर्देशों को नजरअंदाज करने वालों पर सीआरपीसी की धरा १३३ और १८८ के तहत सख्ती से करवाई करे इसमें किसीके साथ भी नरमी नहीं बरती जायेगी चाहे वह सरकार या समाज में कोई भी रुतबा रखता हों। जिनके यहाँ कुछ महीने में शादी हैं और उन्होंने व्यवस्था कर ली हैं वह क्या करे तो सरकार के तरफ से यह स्पष्ट किया गया हैं के उनके पास ४० दिन का वक़्त हैं वह दुबारा अपनी व्यवस्था कर ले ऐसे में यह कानों अगर पुरे देश में लगे तो वह दिन दूर नहीं जब हर व्यक्ति को दो समय का खाना नसीब होगा.

Tuesday, 21 February 2017

अंगदान - श्रेष्ठदान

अंगदान - श्रेष्ठदान 
'मेरे बाद मेरे आँखों से तुम यह दुनिया देखना' यह  सिर्फ एक फिल्मी डायलॉग नहीं हैं।   आज यह संभव हैं नेत्रदान के कारण।  उसी तरह हम हमारे शरीर के पुरे अंगदान कर सकते हैं।   अंगदान क्या हैं - अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया हैं जो हमारे ऊतकों को या हमारे शरीर के अंग को एक जीवित व्यक्ति या कुछ देर पहले मृत हुए शरीर से अंग निकालने की प्रक्रिया हैं।  जिसे निकालके दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया हैं।  जो अंग दान करता हैं उसे दाता तथा जो वह प्राप्त करता हैं उसे प्राप्त करनेवाला कहते हैं।  इसे किसी भी उम्र के व्यक्ति दान कर सकते हैं।  शरीर के कुछ अंग जीवित व्यक्ति भी दान कर सकता हैं बशर्ते वह अपनी सम्मति दे।   ज्यादातर सब अंग एक मृत व्यक्ति द्वारा दिए जा सकते हैं किन्तु इसे प्राप्तकर्ता के पास व्यक्ति के मृत होने के कुछ ही घंटो के बीच पहुंच जाने चाहिए।   और जीवित व्यक्ति के सम्बन्ध में उसकी पूर्वानुमति आवश्यक हैं।   मृत व्यक्ति के सम्बन्ध में उसके परिजनों की सम्मति लेना आवश्यक हैं।   
स्वेछिक अंगदान होता हैं, जहा तक हो सके सब अंगदान स्वेछिकता से  ही होते हैं।   स्वेछिक अंगदान दो तरह का होता हैं. एक जहा पर दाता खुद ही सम्मति देता हैं और दूसरा जहा पर कोई भी व्यक्ति अंगदान को मना नहीं करता।   हमारे देश में हम पहली स्वेछिक अंगदान को मानते हैं जहा दूसरी और पश्चिमी देशों में दुसरी स्वेछिक प्रणाली को मानते हैं।  ज्यादातर अंगदान गुर्दा, नेत्र, ह्रदय, फेफड़े, जिगर, अग्नाशय और त्वचा के मामलो में होता हैं।  किन्तु अंगदान की काफी कमी देखी जा रही हैं।  इसे परिवार के नामंजूरी के कारण और अंगदान के बारे में गलतधारणाओं के कारण कमी हो रही हैं।  और इसे धर्म, डर ,अज्ञानता, ग़लतफ़हमी, कानूनी पेचीदगी और अंगदानो के बारे में हो रही तस्करी के कारण भी लोग अंगदान करने से डरते हैं।   अंगदान को बढावा देने के लिए हमें कुछ उपाय करने होंगे जैसे मरीज के इलाज को बेहतर बनाना ताकि उसकी मौत होने के बाद शरीर अंग को आसानी से प्राप्त कर सके।  मतलब उसके परिजनों को यह भरोसा होना चाहिए के बेहतर इलाज के बावजूद उसकी मौत हो गयी तो उसके अंगदान करके कुछ अच्छा काम करना होगा।  देश में प्रशिक्षित प्रत्यारोपित समन्वयोंको को तथा  प्रशिक्षित सलाहकारों को नियुक्त करना होगा। वैद्यकीय सुविधाओं को बेहतर बनाना होगा।   विशेषज्ञ तथा सर्जनों की संख्या बढ़ानी चाहिए। उपलब्ध सुविधाओं को बेहतर बनाना होगा।   समाज के भीतर अंगदानो के महत्व को बढ़ाना चाहिए, अंगदानो के बारे में समाज में जागृति होनी चाहिए।  अंगो के बेहतर पैकिंग, परिवहन तथा प्रत्यारोपण की प्रक्रिया सहज सुलभ होनी चाहिए।  हमें यह याद रखना होगा की अंगदान के  कारण किसीके शोक को दूसरो के आनंद में बदलने की शक्ति हैं।  यह भी याद रखना होगा के मारने के साथ ही हम्मर अंग नष्ट होते हैं , किन्तु उसे दान करने से ही हम दूसरों के शरीर में अंग के द्वारा जीवित रह सकते हैं।  

Sunday, 12 February 2017

फिल्मों की शराब

फिल्मों की शराब 
"मुझे दुनिया वालों शराबी ना समझो मैं  पिता नहीं हु पिलाई गयी हैं" फिल्म लीडर का यह गाना सुनते ही हमारे जेहन में आता हैं वह दिलीप कुमार का लड़खड़ाता अभिनय।  हमारे फिल्मों में शराबी का अभिनय बिना शराब पिए ज़िंदा किया हैं वह है जॉनी वॉकर ने।  कहते हैं के मरते दम तक जॉनी वॉकर ने शराब को हाथ नहीं लगाया था।   किन्तु उनका अभिनय ही इतना दमदार था के क्या कहना।  हमारे  बॉलीवुड में शराब पर बहोत से गाने फिल्माए गए हैं।  गाने क्या इस पर तो संवाद भी लिखे गए हैं " कौन कम्बख्त हैं जो बर्दाश्त करने के लिए पिता हैं , मैं तो पिता हूँ के बस सांस ले सकु"।  यह मशहूर संवाद फिल्म " देवदास " का हैं जो दिलीप कुमार ने बोला था।  शराब पे बने हुए गाने भी काफी मशहूर हुए हैं।  जैसे " जागते रहो " का मोतीलाल पे फिल्माया गया गाना "जिंदगी ख्वाब हैं ख्वाब में झूठ क्या भला और भला सच हैं क्या" . क्या सच कहा गया हैं उस गाने में।  जिसे शैलेन्द्र जी  ने लिखा और संगीत दिया था सलिल चौधरी ने और गाया था मुकेश जी ने।  बहोत कमाल का गाया था।  फिल्मों में कहा गया के शराब पीने से गम हल्का होता हैं।  सबके लिए यह बात अलग अलग लागू होती हैं।  किन्तु यह बात शायद सच होगी के पीने के बाद होश में ना रहने के कारण आदमी कुछ देर के लिए ही सही लेकिन इस दुनिया से परे हो जाता हैं।   किन्तु जिस तरह से हमारे फिल्मों में शराबी के गाने फिल्माते हैं तो उससे तो लगता हैं के सच में शराब गम हल्का करता हैं।  अब इस गाने को ही ले लीजिये जो "कुली "  फिल्म में था उसमे कहा ही गया था " मुझे पीने का शौक नहीं, पिता हूँ गम भुलाने को , तेरी यादें मिटाने को " अब अगर सच में शराब पीने से आदमी की याददाश्त गई रहती तो हर क्रिमिनल ने गुनाह करने के बाद शराब पीके अपनी याददाश्त मिटाई रहती और कोर्ट भी यह साबित नहीं कर पाता की यह गुनहगार हैं क्योंकि उसकी याददाश्त बची ही नहीं  रहती थी।  किन्तु ऐसा होता नहीं हैं।  कुछ ख़ास गीत जो शराब के ऊपर फिल्माए गये हैं।   जो काफी मशह्र्र हुए हैं।  
  छलकाए जाम आइये आपकी आँखों के नाम - मेरे हमदम मेरे दोस्त
छु लेने दो नाजूक होठों को - काजल
मुझको यारों माफ़ करना में नशे में हु - में नशे  में हूँ
मुझे नौलखा मंगा दे रे ओ सैयां दीवाने - शराबी
इम्तहान हैं हैं हैं हैं तेरा इम्तहान हैं - सुहाग
पी ले पी  ले ओ मोरे राजा -  तीरंगा
पंडित जी मेरे मरने के बाद - रोटी कपड़ा और मकान   इस गाने में हीरोइन खुद ही कहती हैं के मेरे मरने के बाद मेरे मुँह में गंगाजल की जगह शराब की दो चार बुँदे डाल देना।  हम यह नहीं कहते के फिल्मों ने शराब को बढ़ावा दिया हैं किन्तु शराब के गाने काफी मशहूर हुए हैं।  जिस तरह से हमारे फिल्मों में हर इवेंट के लिए गाने बने हैं उसी तरह से शराब पे भी बहोत से गाने बने हुए हैं।  आखिर में हम इतना  कहना चाहेंगे
" भले ही लगे प्यारी प्यारी शराब
जिसको पीने से भूल जाते हैं सारे हिसाब
किन्तु जाते ही शरीर के भीतर 
आदमी क्यों बन जाता हैं हैवान 
इसलिए कहता हूँ मेरे दोस्तों 
मिलते ही शराब दे दो नही नहीं का जवाब "


 

Wednesday, 8 February 2017

राजनीति की दंगल

राजनीति की दंगल 
 बचपन में हम सबको सिखाया जाता हैं के लड़ना झगडना बुरी बात हैं, किन्तु बड़े  होते ही हम यह बात क्यों  भूल  जाते हैं पता नहीं।   आज यह बात याद आने की बात है क्योंकि हमारे देश में प्रदेश चुनाव होने वाले हैं उसमे पार्टिया इस तरह से झगड रही हैं मानो कुत्ते लड़ रहे हों।   और वह भी इस तरह से के कुत्ते भी शरमा जाए।   वह भी कहे के हम  सिर्फ   रोटी के  लिए या अपने एरिया में आने वाले पे भोंकते हैं।   किन्तु ये राजनेता तो टिकिट के लिए इस तरह से लड़ रहे हैं की अगर उनको टिकिट नहीं मिली तो जान जायेगी।  कुछ लोग टिकिट न मिलने के कारण लड़ रहे हैं , अगर किसी को टिकिट  मिली तो पसंद की जगह नहीं मिली इसलिए भी लड़ रहे हैं।   टिकिट न  मिलने वाले कहते हैं के बाहर वालों को टिकिट मिल रहे हैं किन्तु जो सालो से पार्टी की सेवा कर रहे हैं उन्हें टिकिट नहीं मिल रहा हैं।   और जिन्हें टिकिट मिल गया हैं वह तो इस तरह से नाटक कर रहे हैं मानो उनकी संपत्ति छीन गयी हों क्योंकि उन्हें अपने पसंद की जगह पे चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला ।   मतलब आज राजनीती सिर्फ मलाई खाने के  लिए  ही  हैं।   जनता की सेवा यह सब ढकोसला  हैं।  पहले राजनेता देश के बारे में कुछ तो सोचते थे किन्तु आजकल राजनीति को अपने अमीर होने का जरिया बना रहे हैं।  आप एक बार राजनीती में आओ मालामाल हो जाओ।  जनता को विकास का गाजर दिखाओ उनके पास एक बार जाओ फिर पांच साल  आप नहीं भी गए तो भी आपसे पूछनेवाला कोई नहीं हैं।  क्योंकि जनता तो उल्लू होती हैं ऐसा राजनेता समझते हैं।   और यह सच भी हैं क्योंकि हम में से कितने लोग राजनेता को उनके चुनावी वादों को याद दिलाते हैं और कितने राजनेता हैं जो ये वादे पूरा  करते हैं।   और जनता को अपने दो वक्त की रोटी को जुडाने में इतनी मशक्कत करनी पड़ती हैं के उसे चुनावी वादे याद रखने का कहा समय मिलता हैं।   इसकी फायदा यह राजनेता उठाते हैं।   और आजकल तो यह फैशन  आ गयी हैं हां मैं इसे फैशन ही कहूंगा क्योंकि जिस तरह से हम साल दो साल में कपडे बदलते हैं उसी तरह से यह नेता लोग पार्टिया बदलते हैं।  चुनावी दौर आया के इनके बिल बदलने का मौसम शुरू हो जाता हैं।   फिर इसमें पहली पार्टी को अपना जन्मदाता कहने वाले दूसरी पार्टी में जाते ही उस  पार्टी को अपना जन्मदाता कहते हैं और पहली पार्टी को अपना कट्टर दुश्मन कहते हैं।  मतलब हर पांच साल में इनका जन्मदाता और जन्मदाती बदल जाते हैं।  जहा गठबंधन में थोड़ी  तनातनी हो गयी तो उन्हें फिर अपने स्वतंत्र अस्तित्व की याद आती हैं।  और फिर कुछ दिनों बाद फिर नए गठबंधन मे जुड़ने की लिए तैयार हो जाते है।  आजकल हमारे देश में यही सबकुछ चल रहा  हैं।  जहा एक दूसरे को अपना बड़ा छोटा भाई माननेवाला उसे ही अपना दुश्मन कह रहा हो।  राजनेता की गर्मी इतनी बढ़ गयी हैं के वह अब मध्यावधि चुनाव करने तक की बात करते  हैं।  चुनाव आयोग ने ही ऐसा कानून लाना चाहिए के जो भी पार्टी मध्यावधि चुनाव  के लिए जिम्मेदार होगी उसे ही पुरे मध्यावधि चुनाव का खर्च करना होगा। और जो भी राजनेता पांच साल के पहले पार्टी बदलता हैं तो उसे दिया गया विकास ख़र्च सूद सही वापस करना होगा।  ऐसे में सब आयाराम गयाराम बंद हो जाएंगे।  अगर क़ानून नहीं हुआ तो अब ऐसे राजनेता को जनता ही सबक सिखायेगी। 

Wednesday, 1 February 2017

फिल्म और यतार्थ
कहते है के सिनेमा हमारे  जीवन का आइना होता है।   जो जीवन में घटता हैं वही सिनेमा में दिखाया जाता हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले हमारे एक प्रतितयश निर्देशक पर हमला हुआ।   क्यों की वह ऐतेहासिक विषय पर फिल्म बना रहे थे।   हम कहते है के हमारी फिल्मे दुनिया में  फेमस हैं क्यों की हम दुनिया  को सही बाते दिखाते  हैं। तो फिर उन पर हमला क्यों हुआ।   एक समुदाय कह रहा था के वह इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं।   किन्तु फिल्म आने के पहले आप कैसे अंदाजा लगा सकते हैं के उन्होंने इतिहास के साथ छेड़छाड़ की हैं।    इसका फैसला करने के लिए सेंसर बोर्ड हैं।   किन्तु आजकल हर समाज अपनी अपनी सेंसर बोर्ड चलाने की कोशिश कर रहा हैं।   अगर ऐसा ही होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब फिल्मकारों के पास विषय वस्तु  ही नहीं बचेगा फिल्म बनाने के लिए।   अगर हम स्वंतत्रता से फिल्म बना नहीं सकते तो फिल्म बनाने का फायदा क्या।   हम हिंसा नहीं चाहते सच्चाई नहीं दिखा सकते किसी के ऊपर टिपण्णी नहीं कर सकते तो फिर किस तरह की फिल्मे बनाये।   काल्पनिक भी बनाते हैं तो उसमे भी कोई न कोई नुक़्स निकाले जाते हैं।   हमारे फिल्म का एक मजबूत पक्ष संगीत हैं।   किन्तु उसमे भी कोई थोड़ा हटके कहना चाहे तो उसे भी बंद किया जाता हैं।   अब गीत चोली के पीछे क्या है इसे ही ले लीजिये उसमे कोई भी अश्लील नहीं किन्तु उसे भी बंद करने की कोशिश  गयी।   देवदास,  बाजिराव मस्तांनी , या अभी बनने की पहले ही पद्मावती पे लोगोने बंदी लगाने की बात की हैं।   इसलिए हम किसी को खुद जज नहीं कर सकते अगर आप नहीं देखना चाहते हैं तो उसे मत देखिये वह अपने आप ही बंद हो जायेगी किन्तु उसके लिए किसी पे हमला या हिंसा करना कहा का न्याय हैं।   हर उस चीज़ पे किसी ना किसी को आपत्ति होंगी तो उसे दर्शाने का शांतिमय तरीका भी है।   किन्तु उसके लिए हिंसा का मार्ग उचित नहीं हैं।