Wednesday, 8 February 2017

राजनीति की दंगल

राजनीति की दंगल 
 बचपन में हम सबको सिखाया जाता हैं के लड़ना झगडना बुरी बात हैं, किन्तु बड़े  होते ही हम यह बात क्यों  भूल  जाते हैं पता नहीं।   आज यह बात याद आने की बात है क्योंकि हमारे देश में प्रदेश चुनाव होने वाले हैं उसमे पार्टिया इस तरह से झगड रही हैं मानो कुत्ते लड़ रहे हों।   और वह भी इस तरह से के कुत्ते भी शरमा जाए।   वह भी कहे के हम  सिर्फ   रोटी के  लिए या अपने एरिया में आने वाले पे भोंकते हैं।   किन्तु ये राजनेता तो टिकिट के लिए इस तरह से लड़ रहे हैं की अगर उनको टिकिट नहीं मिली तो जान जायेगी।  कुछ लोग टिकिट न मिलने के कारण लड़ रहे हैं , अगर किसी को टिकिट  मिली तो पसंद की जगह नहीं मिली इसलिए भी लड़ रहे हैं।   टिकिट न  मिलने वाले कहते हैं के बाहर वालों को टिकिट मिल रहे हैं किन्तु जो सालो से पार्टी की सेवा कर रहे हैं उन्हें टिकिट नहीं मिल रहा हैं।   और जिन्हें टिकिट मिल गया हैं वह तो इस तरह से नाटक कर रहे हैं मानो उनकी संपत्ति छीन गयी हों क्योंकि उन्हें अपने पसंद की जगह पे चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला ।   मतलब आज राजनीती सिर्फ मलाई खाने के  लिए  ही  हैं।   जनता की सेवा यह सब ढकोसला  हैं।  पहले राजनेता देश के बारे में कुछ तो सोचते थे किन्तु आजकल राजनीति को अपने अमीर होने का जरिया बना रहे हैं।  आप एक बार राजनीती में आओ मालामाल हो जाओ।  जनता को विकास का गाजर दिखाओ उनके पास एक बार जाओ फिर पांच साल  आप नहीं भी गए तो भी आपसे पूछनेवाला कोई नहीं हैं।  क्योंकि जनता तो उल्लू होती हैं ऐसा राजनेता समझते हैं।   और यह सच भी हैं क्योंकि हम में से कितने लोग राजनेता को उनके चुनावी वादों को याद दिलाते हैं और कितने राजनेता हैं जो ये वादे पूरा  करते हैं।   और जनता को अपने दो वक्त की रोटी को जुडाने में इतनी मशक्कत करनी पड़ती हैं के उसे चुनावी वादे याद रखने का कहा समय मिलता हैं।   इसकी फायदा यह राजनेता उठाते हैं।   और आजकल तो यह फैशन  आ गयी हैं हां मैं इसे फैशन ही कहूंगा क्योंकि जिस तरह से हम साल दो साल में कपडे बदलते हैं उसी तरह से यह नेता लोग पार्टिया बदलते हैं।  चुनावी दौर आया के इनके बिल बदलने का मौसम शुरू हो जाता हैं।   फिर इसमें पहली पार्टी को अपना जन्मदाता कहने वाले दूसरी पार्टी में जाते ही उस  पार्टी को अपना जन्मदाता कहते हैं और पहली पार्टी को अपना कट्टर दुश्मन कहते हैं।  मतलब हर पांच साल में इनका जन्मदाता और जन्मदाती बदल जाते हैं।  जहा गठबंधन में थोड़ी  तनातनी हो गयी तो उन्हें फिर अपने स्वतंत्र अस्तित्व की याद आती हैं।  और फिर कुछ दिनों बाद फिर नए गठबंधन मे जुड़ने की लिए तैयार हो जाते है।  आजकल हमारे देश में यही सबकुछ चल रहा  हैं।  जहा एक दूसरे को अपना बड़ा छोटा भाई माननेवाला उसे ही अपना दुश्मन कह रहा हो।  राजनेता की गर्मी इतनी बढ़ गयी हैं के वह अब मध्यावधि चुनाव करने तक की बात करते  हैं।  चुनाव आयोग ने ही ऐसा कानून लाना चाहिए के जो भी पार्टी मध्यावधि चुनाव  के लिए जिम्मेदार होगी उसे ही पुरे मध्यावधि चुनाव का खर्च करना होगा। और जो भी राजनेता पांच साल के पहले पार्टी बदलता हैं तो उसे दिया गया विकास ख़र्च सूद सही वापस करना होगा।  ऐसे में सब आयाराम गयाराम बंद हो जाएंगे।  अगर क़ानून नहीं हुआ तो अब ऐसे राजनेता को जनता ही सबक सिखायेगी। 

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