Friday, 10 June 2016

सेंसर बोर्ड

सेंसर बोर्ड

       किसी भी गलत चीज़ को समाज में बढ़ावा ना मिले और उससे देश का माहोल न बिगड़े इसका खयाल रखना पुलिस का काम होता हैं।  देश का खयाल रखना सरकार का काम होता हैं।  इसके लिए अलग अलग विभाग तथा संस्थाये बनी हैं।  उसी तरह फिल्मों के जरिये  समाज में अगर गलत चीज़ का प्रभाव बढ़ता हैं तो उसे रोकने के लिए सेंसर बोर्ड बना हैं।  सेंसर बोर्ड फिल्मों से आपत्ती जनक दृश्यों को हटाने के लिए निर्मातों को कहते हैं, ताकि उससे समाज में शांति बनी रहे।  किन्तु आज क्या हो रहा हैं।  आज हर कोई खुद ही सेंसर बोर्ड का काम कर रहा हैं।  जैसे कुछ साल पहले झेंडा इस मराठी फिल्म के बारे में हुआ था, जिस पर अलग अलग राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी सेंसर शिप लगाई थी।   इसी तरह माधुरी दीक्षित की आजा नचले फिल्म के एक गाने में एक विशिष्ट समाज का नाम आने पर आपति जताई थी जब उस गाने से उसका नाम निकाल दिया तब काही वह फिल्म पर्दे पर आई।  इसी तरह 70 के दशक में फिल्मों में कीस करना यानि चुंबन लेना दिखा ही नहीं सकते थे, वही आज इमरान हाशमी किसीग स्टार कहलाता हैं।  आज फिल्मों में चुंबन आम बात हो गयी हैं।  मतलब यह हैं की जो बात कुछ साल पहले निषिद्ध मानी जाती थी वही आज सही मानी जाती हैं।  इस बात का जिक्र इसलिए हो रहा हैं की आज कल उड़ता पंजाब इस फिल्म के बारे में हो रहा हैं।  सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी इस फिल्म के बारे में अनुकूल नहीं हैं।  वह इसके विरोध में हैं।  उन्होने इस फिल्म से पंजाब का नाम तथा जालंधर, अमृतसर, तरंतारण, अबेसर, और लुधियान इस नामों को कट सुझाया हैं।  यह फिल्म ड्रग्स पर आधारीत हैं।  ऐसे में इसमे इंजेक्शन लेना, ड्रग्स लेते समय के क्लोज़ यूपीएस, संवादो में आए हुए इलेक्शन, एमपी, एमएलए,पार्टी,पार्लियामेंट इस शब्दों पर भी ऐतराज जताया हैं।  निर्माता दिग्दर्शक अनुराग कश्यप ने कहा हैं की अगर इतने सारे कट्स किए तो फिल्म का आत्मा ही खत्म हो जायेगा।  अगर आपको यह फिल्म बच्चो के हिसाब से सही नहीं लग रही तो इससे ए सर्टिफिकेट दे सकते हैं।  किन्तु पहलाज निहलानी इस पर भी तैयार नहीं हैं।  अब यह मामला कोर्ट में पहोच चुका हैं।  लोगों ने क्या देखना चाहिए और क्या नहीं उसका फैसला खुद लोगों पर ही छोड़ देना चाहिए ।  जनता खुद समजदार होती हैं।  अगर उसे अच्छा लगा तो वह देखेगी अगर नहीं तो खुद ही नकारेगी।  किन्तु यही बात सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी को मंजूर नहीं हैं।  ऐसा नहीं हैं की यह समस्या सिर्फ पंजाब में ही हैं। यह तो सारे देश बल्कि हर देश में हैं।   लेकिन इसे सिर्फ एक प्रतिनिधिक तौर पर दिखाया गया हैं।  जिसमे पंजाब का नाम आया हैं।  अब देखते हैं की कोर्ट का फैसला क्या आता हैं।  किन्तु इस एक फिल्म को ब्यान  करने से क्या यह समस्या हल हो जाएगी।  निर्माता दिग्दर्शक अनुराग कश्यप ने तो इस सच्चाई को पर्दे पर लाने की एक कोशिश की हैं। क्या इस तरह की फिल्मे आई नहीं किन्तु अब कोर्ट में पहोचने के कारण यह मामला उलझता जा रहा हैं।  

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