राजनीति और फिल्मे
कहते हैं फिल्मे हमारे समाज का आइना होते हैं । यह बात काफी हद तक सही भी हैं, क्योंकि जो समाज में घटता हैं वही हमारे देश की फिल्मों में दिखाने की कोशीश की जाती हैं । इस सम्बन्ध में हम राजनीति की बात करते हैं । इस संदर्भ में एक फिल्म "आंधी" की बात करना काफी सटीक होगा । क्योंकि यह फिल्म इतनी चर्चित रही के इस पर बंदी की भी पुरजोर कोशिश हुई थी । कहते हैं के यह फिल्म एक चर्चित राजनेता पर आधारित थी । जिसके कारण इस पर बंदी लगाने की कोशिश हुई थी । अब इस सदी की एक चर्चित फिल्म हैं "सरकार " , जिसे अमिताभ बच्चन जी ने काफी सूंदर तरीके से निभाया हैं । अब इसका तीसरा भाग भी आनेवाला हैं । कहते हैं यह फिल्म भी एक राजनेता के जीवन से प्रेरित हैं । "आरक्षण " जो की प्रकाश झा की फिल्म थी बहोत सही तरीके से दिखाया गया था उसमे आरक्षण और उसके विरुद्ध खड़े हुए लोगों का संघर्ष । इसमें अमिताभ बच्चन ने जो एक प्रिंसिपल का रोल निभाया था वह भी काफी उल्लेखनीय रहा । दिलीप कुमार अभिनीत लीडर फिल्म भी राजनीती से प्रेरित थी । राजेश कहना के "आज का ऍमअलए" भी काफी अच्छी रही । उसमे सीधा साधा आदमी किस तरह राजनेता का पर्दाफाश करने के लिए भ्रष्ट बन जाता हैं वह दिखाया था । इसमें "इन्कलाब" का नाम लेना जरुरी हैं । अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी अभिनीत यह फिल्म भी गलत राजनेता की छबि को प्रस्तुत करता हैं । रवीना टंडन द्वारा अभिनीत " सत्ता" भी एक ऐसी ही फिल्म थी जो की एक औरत के राजनीती के प्रवेश को किस तरह से निभाती हैं यह दिखाया गया था । एम् ऐस सत्थु द्वारा निर्देशित " गरम हवा" जो की बलराज साहनी अभिनीत फिल्म थी काफी चर्चा में रही । राजनीती से प्रेरित फिल्म- में आज़ाद हूँ, राजनीती, गुलाल, डर्टी पॉलिटिक्स, युवा, शूल, रक्तचरित्र, सत्याग्रह । माधुरी दिक्षित और जूही चावला अभिनीत " गुलाब गैंग" फिल्म काफी अच्छी थी । उसमे इन दोनों की जुगलबंदी काफी अच्छी रही । एक दिन का मुख्यमंत्री बनने के बाद जो कुछ घटता हैं उसे दिखाया था अनिल कपूर और रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म "नायक- रियल हीरो " । यह फिल्म भी राजनीती के असली चेहरे को उजागर करती हैं । जरूरी नहीं के हर फिल्म में राजनेता बुरे ही दिखाते हैं इसमें राजनीती की अच्छी मिसाल भी प्रस्तुत की जाती हैं ।जिस तरह समाज में जो रहा हैं वही हम आचरण में लाते हैं उसी तरह राजनीती में भी वही हो रहा हैं ।देखा जाए तो हमारे एक पडोसी देश को आतंकवादी देश घोषित करने के लिए सब राजनीतिक पार्टियों ने एक होना चाहिए किन्तु उनमे इतने मत भिन्नता हैं के एक राजनेता का गट अभी भी चाहता हैं के उस देश के साथ दोस्ती होनी चहिये । यही सभी कुछ फिल्मों में भी दिखाई पड़ता हैं ।अब दिल्ली के एक यूनिवर्सिटी में भारत विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं किन्तु अगर राजनेता चाहे तो सब मिलकर उन दोषी को सजा दे सकते हैं किन्तु ऐसा हो नहीं सकता । मैं यह इसलिए कह रहा हूँ के जो राजनेता एक आतंकवादी को फांसी देने के विरोध में संसद में आवाज उठाते हैं वह यह काम कैसे करेंगे । मतलब यही के यही सबकुछ फिल्मों में दिखाया जाता हैं लेकिन जब इसे फिल्मों में दिखाए जाने की बात होती हैं तो उस पर बंदी की कोशिश की जाती हैं ।लेकिन यह गलत हैं अगर यही गलत बाते राजनेता संसद के अंदर ना करे तो उसे फिल्मों में भी दिखाया नहीं जाएगा । इसलिए हम कहते हैं के फिल्मे समाज का आइना होता हैं । इसलिए अब जनता को आगे आके ऐसे राजनेता का विरोध करना होगा ताकि फिल्मों में भी उनकी सही छबि प्रस्तुत हो और सही में फिल्मे समाज सुधारने का काम करे ।