Tuesday, 12 July 2016

bacchon ki maansiktaa

आज कल अभिभावक होना बहोत ही  कठिन हो गया हैं.  क्यों की बच्चों की मानसिकता समझ पाना  काफी कठिन हो गया हैं.  अभिभावकों को काफी कंट्रोल करना पड़ता हैं खुद पर और बच्चों पर भी.  आजकल बच्चों को छूट देना भी महँगा पड सकता हैं.  पहले बच्चों को शिक्षा के तौर पर मारा जाता था या उन्हें भूखा रखा जाता था या उन्हें इस तरह ट्रीट किया जाता था के उन्हें समझ आने लगे किन्तु आजकल यह करना काफी डरावना हो गया हैं.   यह इसलिए के आजकल के बच्चे इंटरनेट से इतने जुड़े हैं के इस स्थिति में वह इस बात का गलत मतलब निकाल के कुछ भी कर सकते हैं.  यानि वह इतने सजग हो गए हैं वह समझ चुके हैं के हम इस तरीके से अभिभावकों को मना ले सकते हैं. चाहे वह  तरीका गलत हो या सही हो.  उन्हें इंटरनेट के जरिये यह पता ही नहीं चलता के जो तरीका वह अपना रहे हों वह क्या गुल खिलाएगा.  बच्चों को अगर हम किसी चीज़ के लिए मना करते हैं तो वह यह समझते हैं के वह उनसे प्यार नहीं करते या वह उन्हें नज़र अंदाज़ कर रहे हैं.  अगर बच्चा किसी चीज़ के लिए जिद करता हों और हम उन्हें नहीं देते हैं तो वह उसे बुरा मानते हैं.  किन्तु हम ऐसे में यह भूल जाते हैं बार बार मना करने से हम भी ज़िद्दी हो गए हैं.   इसलिए ऐसे में बच्चों को विश्वास में लेके उन्हें समझाना जरुरी हैं.  किसी बात के लिए हम उन्हें नहीं देने की स्थिति  में क्यों हैं या हम किसलिए मना कर रहे हैं यह समझाना जरुरी हो गया हैं.  ऐसे में अगर एक बार वह समझ  गए तो यह काफी हद तक मुमकिन हैं के बच्चे वह बात दुबारा ना करे.  अगर वह बात दोबारा बच्चे  करे तो हमें मौन रहना चाहिए हो सकते हैं के हमारे मौन से वह यह बात समझ  ले और आगे वह गलती ना करे.  मतलब हमारा मौन भी कारगर सिद्ध हो सकता हैं.  इसलिए शिक्षा के तौर पर भूखा रखना या मारने के बजाय हमें शांत तौर पर उन्हें समझाके  उनकी गलती का एह्सास करके देना ही उनकी परवरिश की सच्ची नींव  रखना होगा। 

Monday, 11 July 2016

एक अस्वस्थ नेता

एक अस्वस्थ नेता

      जब पहली बार आप पार्टी ने चुनाव जीता था तो वह काबिले तारीफ और एतिहासिक था । इतने साल काँग्रेस पार्टी की शीला दीक्षित का राज खत्म करके दिल्ली में राज करना अपने आप में काबिले तारीफ ही था।  तब आप के मेंबरो ने और खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सब सुविधा को नकार कर दिल्ली मेट्रो से सफर करना और संसद में अपनी ही गाड़ी से आना लोगों को बहोत भा गया।  इनके सादेपन की सारी दिल्ली कायल हो गई।  किन्तु कुछ ही दिनों में सच्चाई सामने आने लगी।  अपने एक मंत्री के समर्थन में केजरीवाल धरने पर बैठ गए।  ये देश के इतिहास में पहली बार हो रहा था जब एक राज्य का मुख्यमंत्री अपने मंत्री के बचाव में खुद धरने पर बैठा हों।  बाद में केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया।  बाद में चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल को अपनी गलती का एहसास हुआ।  उन्होने फिर लोगों से खुद को चुनाव में जीतकर लाने की गुजारिश की।  लोगों ने भी उन्हे भारी मतों से चुनाव जी जितवाया।  अरविंद केजरीवाल फिर मुख्यमंत्री बने।  अब की बार उन्होने सारी सुख सुविधा लेना शुरू किया।  आजकल वह किसीपर भी कोई इल्जाम लगा रहे हैं।  पहले उन्होने केन्द्रीय जहाजरानी मंत्री श्री नितिन गडकरी जी पर आरोप लगाए।  जब गडकरी जी ने उनको आरोप सबूत के साथ सिद्ध करने की बात कही तो वह साबित नहीं कर सके।  बाद में वह मामला शांत हो गया।  किन्तु आजकल केजरीवाल प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी पर यह आरोप लगा रहे हैं की वह उन्हे सही तरीके से काम करने नहीं दे रहे हैं।  जबकी मोदी जी सारे देश के प्रधानमंत्री हैं जबकी केजरीवाल सिर्फ एक राज्य के मुखमंत्री हैं।  एक बीजेपी नेता ने एक लिस्ट जारी की हैं जिसमे केजरीवाल के सारे मंत्रियों की शैक्षनिक पात्रता का ब्योंरा दिया गया हैं।  आजकल एक नया मामला गरमाया हैं वह हैं उनके एक्कीस आमदारों के ऊपर लटकती हुई अपात्रता की तलवार।  इन्हे केजरीवाल ने संसदीय सचिव का दर्जा देकर नियुक्त किया हैं।  किन्तु घटना के अनुसार दिल्ली के कुल आमदार के संख्या के अनुपात में दस प्रतिशत के ऊपर सदस्यों को संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्त नहीं कर सकते।  और जिस राज्यों ने पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा आमदारों को संसदीय सचिव नियुक्त किया हैं वह भी विवादों में हैं तथा न्यायप्रविष्ट हैं।  क्यों की यह पद लाभ के पद के व्याख्या के अंदर आता हैं यानी इस पद से संसदीय सचिवों को लाभ होता हैं।  एक साथ दो लाभों के पद पर बने रहना घटना के खिलाफ हैं इसलिए केजरीवाल सरकार के उन एक्कीस मेंबेरो पर कारवाई होना तय हैं।  इसलिए केजरीवाल सरकार ने एक विधेयक पारीत कर अपने मेंबेरो पर होने वाली कारवाई को टालने का प्रयास किया हैं किन्तु उस विधेयक को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया।  किन्तु उसका भी दोषी केजरीवाल ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को ही ठहराया हैं।  लेकिन शायद उन्हे यह मालूम नहीं हैं की इसकी शुरुवात मार्च महीने में ही हो गयी थी जब दिल्ली के एक वकील ने आमदारों की इस तरह की नियुक्ति पर जनहित याचिका दायर की थी।  इसके चलते चुनाव आयोग ने सभी आमदारों से इसके बारे में सफाई देने को कहा था। किन्तु कुछ आमदारों ने तो हम प्रशिक्षणार्थी हैं और किसी तरह का लाभ न लेते हुए सरकार का काम कर रहे हैं इस तरह की दलील पेश की।  किन्तु सच्चाई तो यह हैं के कुछ आमदारों को दिल्ली सरकार के सचिवालय में अलग रूम दिये गए हैं और उन्हे कुछ कर्मचारी भी मुहैया कराये गए हैं।  अगर ऐसे में खुद को प्रशिक्षणार्थी घोषित करते हैं तो उसे मानने में केजरीवाल सरकार को कोई कमीपन महसूस होने की जरूरत नहीं थी किन्तु उसे भी केजरीवाल सरकार ने नकारा और खुद ही खुद को एक सन्देह के कतगाहरे में खड़ा पाया।  अब देखते हैं के आनेवाले वक्त में क्या होता हैं।  अगर इसी तरह के झुटे और मनगढ़ंत आरोप केजरीवाल औरों पर लगाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब वह पहले की तरह धरने पर बैठे हुए नजर आएंगे।  

Thursday, 23 June 2016

पुलिस कस्टडी में मौत

पुलिस कस्टडी में मौत
आज हमारे देश में पुलिस लॉकअप में होनेवाली मौतों में बढ़ोतर्री होने लगी हैं।  इसे संयुक्त राष्ट्र ने भी गंभीरता से लिया हैं।  युद्ध या सदृश  परिस्थितियों या इमेर्जेंसी के समय में भी इस तरह की मौतों का समर्थन नहीं किया जा सकता हैं।  भारतीय राज्यघटना यानि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार हर व्यक्ति को जीने का तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया हैं। इसलिए किसिकों अरैस्ट किया गया तो भी उसे पूर्णतया कानूनी संरक्षण प्रदान करना सरकार की ज़िम्मेदारी हैं।  ऐसे समय में लॉकअप में होनेवाली इंक्वैरि या किसी भी प्रकार की अमानवीय हरकत को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जाएगा । सूप्रीम कोर्ट के इस बयान के बावजूद लॉकअप में होनेवाली मौतों में कमी नहीं आई हैं।  नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस में महाराष्ट्र सबसे आगे हैं।  इस तरह की मौतों में कमी होने के लिए न्यायालय ने सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी केमेरे लगाने की शिफारस की हैं।  किन्तु सभी पुलिस थानों की बात छोड़ो सरकार ने तो संवेदनशील थानों में भी सीसीटीवी केमेरे नहीं लगाये हैं। 

अगर हम इस बात पे गौर करे की यह मौतें होती ही क्यों हैं तो इस के पीछे का सबसे पहला कारण ध्यान में आता हैं वो यह हैं की जब गुनहगार को पुलिस पकड़ती हैं तो उसे इतनी मानसिक यातनाएं दी जाती हैं की वह आत्महत्या करने की कोशिश करता हैं।  इसमे ज़्यादातर गरीब,कम पढे लिखे या अशिक्षित लोगों का ही भरना होता हैं। इन्हे किसी भी प्रकार का कोई राजकीय सपोर्ट नहीं होता हैं।  इसलिए जब उनके घर पर पुलिस पहुँचती हैं तो वैसे ही डर के कारण मानसिक तौर पर अधमरे हो जाते हैं।  उस पर पुलिस का रवैया उनको और अंदर से तोड़ देता हैं।  मैं यह नहीं कहता के हर आरोपी निर्दोष होता हैं। लेकिन सिर्फ शक की बिनाह पे किसी को बंदी बनाया जाता हैं तो उसे सचमुच मानसिक धक्का तो लगेगा ही।  जब हमारे देश में ब्रिटिश राज था तो उस समय आज की तरह आधुनिक तंत्रज्ञान नहीं था तो गुनहगार को मार के उससे गुनाह कबुल करना शॉर्ट कट माना जाता था, किन्तु आज के जमाने में इतने आधुनिक रास्ते हैं की आरोपी को बिना तकलीफ दिये ही सच्चाई का पता लगाया जा सकता हैं।  जिसमे नारकोटिक टेस्ट जैसे साधन भी हैं।  इसलिए आज पुलिस का समुपदेशन करना तथा उन्हे उचित प्रशिक्षण देना जरूरी हैं।  ताकि पुलिस कस्टडी में होने वाली मौतों को टाला जा सके।  

Tuesday, 21 June 2016

अंतरराष्ट्रिय योग दिन

अंतरराष्ट्रिय योग दिन

       21 जून को अंतरराष्ट्रिय योग दिन घोषित किया गया हैं।  क्या है हमारे जीवन में योग का महत्व।  कहते हैं के भारत के आयुर्वेद में योग को एक महत्वपूर्ण क्रिया बताया गया हैं।  इससे ना जीवन में आदमी तनाव मुक्त रहता हैं बल्की कई बीमारियां भी  बिना दवाई के ठीक करता हैं।  इसलिए सबको योग करना चाहिए, इसे किसी धर्म, जाती या व्यक्ति विशेष के साथ जोड़ना नही चाहिये ।  लोम विलोम, कपाल भाति और ध्यान इसके करने से भी काफी लाभ होता हैं।  इसमे ॐ का उच्चारण होता हैं।  वैसे आयुर्वेद में यह भी बताया गया हैं के ॐ का उच्चारण करने से हमारे शरीर को काफी लाभ होता हैं।  इसमे ॐ के उच्चारण से पूरे शरीर में रीढ़ की हड्डी से लेकर गले तक का व्यायाम होता हैं।  किन्तु इसे हिन्दू धर्म से जोड़कर बाकी लोगों ने इसका उच्चारण करने से मना कर दिया हैं।  लेकिन क्या हम किसी दवाई को किसी धर्म या जाती विशेष के साथ जोड़कर देखते हैं, या यह डॉक्टर हमारे धर्म का होगा तो ही इसके पास हम जाएँगे क्या ऐसा कहते हैं, नहीं ना, तो फिर इस को किसी धर्म से जोड़कर क्यूँ देखा जा रहा हैं।  इसको तो दुनिया के 180 से ज्यादा देशों ने मान्यता दी हैं तो फिर हमारे देश के ही कुछ संगठन इसे विरोध कर रहे हैं।  ॐ का उच्चारण करने से शरीर को काफी लाभ होता हैं।  यह एक बिना किसी इनवेस्टमेंट के कमाया जाने वाला धन हैं जो की योग के करने से शरीर को तंदूरुस्ती के तौर पर मिलता हैं।  हमे इसमे कुछ भी इनवेस्टमेंट ना करते हुए सिर्फ अपना कुछ समय देना हैं जो की रोज करना होगा जिससे हमे हानी नहीं बल्कि लाभ ही होगा।  इस साल का हमारा दूसरा अंतरराष्ट्रिय योग दिन हैं।  इसे भारत की बहोत बड़ी उपलब्धि माना जाएगा क्योंकि भारत सरकार के लगातार कोशिशों के कारण ही इसे अंतरराष्ट्रिय योग दिन घोषित किया गया हैं।  हमे रोज योगा करना चाहिए जिससे हमे दिनभर काम करने की ऊर्जा मिलती हैं।  इस साल तो माननीय प्रधानमंत्री जी श्री नरेंद्र मोदी जी ने अगले साल से योगा में उतकृष्ट कार्य करनेवालों के लिए 2 पुरस्कार घोषित किए हैं।  आज भारत हर मोड पर आगे जा रहा हैं ऐसे में भारत सरकार के चलते 21 जून को अंतरराष्ट्रिय योग दिन घोषित किया जाना वाकई अंतरराष्ट्रिय स्तर पर भारत की स्तिथी मजबूत बना रहा हैं।  इसलिए योगा करो और स्वस्थ रहो।  

Thursday, 16 June 2016

भड़कीले विज्ञापन

भड़कीले विज्ञापन

मेरी उम्र से मेरी त्वचा का पता ही नहीं चलता, या 60 साल के जवान या 60 ये बूढ़े या फिर तुम्हारी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे। इस तरह के विज्ञापनों के कारण हम आज इसके इतने आदि हो गए हैं के ज़्यादातर लोग अपनी सोचने की शक्ति भुलाकर बस  विज्ञापनों में दिखाया तो सही होगा यह सोचकर वह वस्तु खरीद लेते हैं।  लेकिन आजतक ऐसी कोई क्रीम नहीं बनी हैं जो के 7 दिनों में ही आपको गोरा बना दे।  लेकिन हमे रेडीमेड मिलता हैं इस कारण हम वह चीज़ ले लेते हैं।  किन्तु क्या हमने कभी यह सोचा हैं के इससे सच में लाभ होगा के नहीं।  हमारे रोज के किचन में इतने सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तु हैं के बाज़ार से गोरा बनने की क्रीम लाने की कोई जरूरत नही ।  अगर हम हल्दी का ही प्रयोग करे तो क्रीम की जरूरत ही नही पड़ेगी।  इसी तरह टमाटर, दही, नींबू , खीरा , बेसन, मसूर की दाल इनका भी प्रयोग करने से सौन्दर्य में चार चाँद लगेंगे।  बच्चे तो इसके जाल में इस तरह से फंस जाते हैं के बिना कुछ सोचे समझे वह चीज़ लेने के लिए अपने पैरेंट्स के पीछे पड जाते हैं।  एक मशहूर चॉकलेट का विज्ञापन आता हैं जिसमे उसके साथ एक छोटा सा खिलौना दिया जाता हैं जिसके कारण बच्चे वह चॉकलेट लेने की जिद करते हैं और इस तरह से चॉकलेट की बिक्री बढ़ जाती हैं।  कोई कहता यह ड्रिंकिंग पाउडर मेरी एनर्जी बढाता हैं तो क्या पुराने लोग बिना एनर्जी के सहारे जीते नहीं थे।  कोई बड़ा स्टार कहता हैं के यह तेल लगाने से आपके सर में ठंडक आएगी तो क्या पुराने लोग गरम ही रहते थे, हमेशा गुस्सा करते थे।  अगर कोई इन कंपनीयों पे यह दावा कर दे के आपके विज्ञापन से यह परिणाम नहीं हुआ तो कैसे होगा।  किन्तु कंपनी एकदम छोटे अक्षरों में उस प्रॉडक्ट पे यह लिख देता हैं के हर आदमी के हिसाब से इसका परिणाम होगा।  मतलब यह के ये बात हर आदमी पे लागू नहीं होगी।  लेकिन यह बात कितने लोग समजते हैं।  अभी कुछ महीने पहले एक नूडल्स बनाने वाली कंपनी के प्रोडक्टस में शरीर को पाये जाने वाले हानिकारक तत्व पाये गए तो उस पर कुछ दिनों के लिए पाबंदी लगा दी गयी थी।  ऐसे कुछ साबुन हैं के जिसको विदेश में आदमी के लिए नही तो कुत्तों को नहलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं।  किन्तु वह साबुन हमारे यहा बड़े ज़ोर शोर से प्रचार करके आदमियों के नहाने का साबुन कहके बेचा जाता हैं।  एक कंपनी जिसकी क्रीम ठंडी में नाक अगर बंद हो तो या छाती पर लगाने से आराम मिलेगा ऐसे कहके बेची जाती हैं वह विदेशों में पाबंदी में हैं।  मतलब उस पर विदेशों में बंदी हैं।  किन्तु हमारे यहा जन जागृति के अभाव में वह धड़ल्ले से बेची जाती हैं।  मतलब इसमे कंपनी के प्रॉडक्ट की अच्छी तरह से जांच पड़ताल नहीं होती।  इसके लिए एक ठोस कारवाई की तथा कड़े कानून की जरूरत हैं।  के अगर उस वस्तु के उचित परिनाम नहीं पाये गए तो कंपनी पर कड़ी कानूनी कारवाई होगी।  

Wednesday, 15 June 2016

बदलता सिनेमा

बदलता सिनेमा
       आज हमारे देश का सिनेमा बदल रहा हैं।  इस से मेरा मतीतार्थ यह हैं के जब हमारे देश में फिल्मों की शुरुवात हुई तब वह महा पुरुषों के ऊपर आधारित रहती थी ।  जैसे 1913 में आई हुई मुक फिल्म राजा हरिश्चंद्र।  यह हरिश्चंद्र राजा के दातृत्व के ऊपर आधारीत थी । बाद के काल में कल्पनाओं पर आधारीत फिल्मे बननी लगी।  जिसमे लेखक कोई भी कल्पना भरी कहानी लिखने लगा और डाइरेक्टर उस कल्पना को इस तरह से पेश करने लगा मानो वह सच हो।  जैसे अभी कुछ सालों पहले आई फिल्म कोई मिल गया थी जो की साइन्स फिक्शन पर आधारीत थी।  लेकिन आज फिर पुरानी ही परंपरा आ रही है।  जैसे अभी कुछ सालों पहले आई फिल्म नेताजी द फोरगोटन हीरो जो की नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर आधारीत थी जिसमे नेताजी का किरदार सचिन खेडेकर ने निभाया था।  1994 में आई हुई फिल्म cWafMV DDhu जो की मशहूर डकैत फूलन देवी पर आधारित थी  अभी हाल में ही आई हुई फिल्म बाजीराव मस्तानी जो की बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेम प्रसंग पर आधारित थी।  अब एक नया ट्रेंड आ रहा है जो की बायोपिक कहलाता है।  मतलब किसी भी व्यक्ति विशेष पर आधारित फिल्म।  इसमे अग्रणी नाम हैं भाग मिल्खा भाग जो की प्रसीद्ध धावपटु फ्लाइंग सीख  मिल्खा सिंग के ऊपर आधारित थी।  एक और फिल्म मेरी कॉम जो की बोकसर मेरी कॉम के ऊपर आधारित थी।  अब सुप्रसिद्ध कुश्ती पटु महावीर फोगाट के ऊपर आधारित फिल्म दंगल आ रही जिसमे  अभिनेता आमिर खान इस भूमिका में हैं।  इस विषय पर सलमान खान की फिल्म सुल्तान आ रही हैं।  ऐसा नहीं की हैं के ऐसी फिल्मे इसके पहले आई नहीं किन्तु कुछ सालों में यह ट्रेंड बढ़ता जा रहा हैं।  चक दे इंडिया इसी कड़ी की एक फिल्म हैं।  अब चर्चा यह हैं की प्रसिद्ध हॉकी पटु मेजर ध्यान चंद के ऊपर भी फिल्म आने वाली हैं।  बहोत सालों पहले आँधी फिल्म आई थी कहते हैं के वह फिल्म इन्दिरा गांधी के जीवन के ऊपर आधारित थी।  2016 में आई फिल्म सरबजीत जो की सरबजीत सिंह जो भीकविंद पंजाब का रहने वाला था गलती से पाकिस्तान की बार्डर में चला गया और उसे वहा  मृत्युदण्ड दिया गया।  इसी साल आई फिल्म नीरजा जो की एक बहादुर एयर होस्टेस नीरजा भानोट पर आधारीत थी।  जिसने 359 पैसेंजर जो की पैन अंम फ्लाइट 73 में सफर कर रहे थे।  मात्र 23 साल के कम उम्र में उसने 359 पैसेंजर को आतंकवादी से बचाने में खुद को मौत के हवाले कर द्या गयी।  इस कैरक्टर को सोनम कपूर ने काफी सुंदर तरीके से निभाया हैं।  अभी हाल में अजहर नाम की फिल्म आई थी जो की क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन के जीवन पर आधारीत थी जिसे किस्सिंग स्टार इमरान हाशमि ने निभाया हैं।  डॉक्टर श्रीनिवास रामचंद्र सिरस जो की एक समलेंगीक थे उनके ऊपर अलीगढ़ नाम की फिल्म आई हैं जिसे मनोज बाजपेई ने निभाया था ।  2012 में आई इरफान खान अभिनीत फिल्म पान सिंह तोमर जो की भारतीय एथ्लीट पान सिंह तोमर के ऊपर आधारित थी।  जो के बाद में चंबल घाटी के मशहूर डकैत बने थे।  सन 2008 में आई फिल्म जोधा अकबर काफी मशहूर हुई।  राजा अकबर जो के एक मुसलमान थे और उनकी पत्नी जोधाबाई जो की एक हिन्दू थी उनके ऊपर बनी फिल्म थी।  जिसे र्हीतीक रोशन और ऐश्वर्या राय ने बहोत ही सुंदर तरीके से निभाया था।  मशहूर उद्योगपति धीरुभाई अंबानी के ऊपर आधारित फिल्म गुरु 2007 में आई थी।  जिसमे अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय ने काम किया था। अपनी पत्नी के बीमारी के चलते जिसे गाव में रास्ता ना होने के कारण  गवाना पड़ा था उसके जीवन पर आधारित फिल्म आई थी मांझी द माउंटेन मैन।  जिसने गाव का रास्ता बनाने के लिए पूरा पहाड़ हथोड़े से तोड़कर एक रास्ता बनाया था ।  जिसकी भूमिका नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाई थी। 2011 में एक फिल्म आयी थी नो वन किल्ल्ड जेसिका जो की मोडेल जेसिका लाल पर आधारी थी जिसकी दिल्ली के एक बार में गोली मारकर  हत्या कर दी गई थी।  इसी तरह की काफी फिल्मे हैं जैसे- द राइजीग –मंगल पांडे, आने वाली फिल्म एम एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी (महेंद्र सिंह धोनी), द डरटी पिक्चर (सिल्क स्मिता),रेबेलीयस फ्लावर (ओशो रजनीश), कलर्स ऑफ प्याशन (राजा रवि वर्मा), द लीजेंड ऑफ भगत सिंह, शहीद ए आजम  ( भगत सिंह), वो लम्हे ( परवीन बाबी), गांधी माय फादर (गांधीजी और उनके बड़े पुत्र के संबंध पर आधारित), हवाईज़ादा (मशहूर साइंटिस्ट शिवकर बापुजी तलपड़े), डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर (डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर), मंजूनाथ ( मंजूनाथ षण्मुगम- जो की एक पैट्रोलियम कंपनी का सेल्स ऑफिसर था जिसे ऑइल माफिया ने 2005 में ऑइल भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने पर मार डाला था । )सरदार- (सरदार वल्लभभाई पटेल), मैं खुदीराम बोस हूँ-स्वतन्त्रता में सहभागी क्रांतिकारी खुदीराम बोस), वीर सावरकर-2001 (स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर), देवी अहिल्या बाई- (अहिल्याबाई होल्कर ) 
       अब इनमे और कितने नाम जुड़ेंगे ये तो आनेवाला समय ही बताएगा।  किन्तु यह बात सच हैं के हमारे फिल्म इंडस्ट्री में नए नए प्रयोग हो रहे हैं इसके लिए सभी लोग जो की इसमे शामिल हैं वह iz”kaluh;  हैं। 


ब्याण्डित


Tuesday, 14 June 2016

आतंक का चेहरा

आतंक का चेहरा

       आज विश्व के हर एक देश के लिए आतंकवाद एक भयानक समस्या बनती जा रही हैं ।  आतंकवाद का कोई धर्म, कोई जात, कोई उद्देश्य नहीं होता ।  बस एक जुनूनियत होती हैं ।  कितने ही आतंकवादी संगठन हैं जो सिर्फ अपनी हुकुमियत विश्व पर लादना चाहता हैं।  हमारे देश के लिए तो यह बहोत ही त्रासदीपूर्ण हैं ।  पहले पंजाब का आतंकवाद , अब कश्मीर का आतंकवाद ।  इसमे समानता यह हैं की इसमे पड़ोसी देशों का महत्वपूर्ण हाथ रहा हैं।  26/9 का अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पे हुआ हमला या 26/11 में मुंबई के ताज होटल पे हुआ हमला इसे हम आतंकवाद का भयानक चेहरा नहीं तो क्या कहेंगे।  अभी 2 दिन पहले अमेरीका के फ्लॉरिडा प्रांत के ओरलाँड़ो के गे नाईट क्लब में हुए हत्याकांड को भी हम आतंकवाद का घिनोना रूप ही कहेंगे ।  इसमे करीब 50 लोग मारे गए ।  इसमे शामिल हमलावर ओमर मतीन भी मारा गया ।  इसमे मतीन के तलाकशुदा पत्नी द्वारा दिये गए बयान के आधार पर यह बात सामने आती हैं के मतीन शुरुवात में अच्छा था सबकी चिंता करता था ।  लेकिन शादी के कुछ महीने के बाद ही वह अलग तरह की हरकते करने लगा ।  पत्नी को मारने लगा ।  छोटी छोटी बातों पर चिड़ने लगा ।  किन्तु मतीन ने गे क्लब के एमर्जन्सि नंबर से इसीस को फोन लगाकर अपनी पूरी जानकारी दी थी ।  इसका मतलब वह पहले ही से इसीस के संपर्क में नहीं था।  किन्तु इसके बाद ही इसीस ने मतीन को अपना मेम्बर बताकर इस हमले की पूरी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली हैं।  इसीस यह एक ऐसी आतंकवादी संघटना है जो छोटे छोटे बच्चों के दिमाग में जिहाद का जहर भरकर उनको उकसाता रहता हैं ताकि वह बचपन से ही आतंकवाद में लगा रहे।  इस हमले की सराहना इस्लामिक स्टेट्स ने की हैं ।  कहते हैं की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता किन्तु जिस तरह से इस्लामिक आतंकवाद सारे विश्व में फैलता जा रहा हैं वह काफी चिंताजनक हैं ।  इसिस कहता हैं की इस्लाम खतरे में हैं।  किन्तु भारत के मुस्लिम जीतने सुखी हैं उतने तो पड़ोसी मुल्क में भी नहीं हैं ।  हमारे यहा हर धर्म हर जाती के इंसान को स्वतन्त्रता हैं उस पर किसी भी धर्म को मानने की जबर्दस्ती नहीं हैं।  किन्तु पड़ोसी मुल्क जिस तरह का प्रचार करके कश्मीर में अस्थिरता  बनाये हुए हैं वह काफी खतरनाक हैं ।  जिस तरीके से ओसमा बिन लादेन को अमेरिका ने मार गिराया था अब वैसी ही चिंता आतंकवादी संगठन के आकाओंकों हो रही हैं इसलिए वह ऐसे हमले कर रहे हैं ।  सिरिया में इसिस का जाल फैलता जा रहा हैं।  वैसे देखा जाये तो अमेरिका की गुप्तचर संघटना इतनी मजबूत हैं की लगभग हर गतिविधि पर सरकार की नजर रहती हैं।  किन्तु वहा आसानी से मिलने वाले हथियार के कारण यह पता करना मुश्किल हैं की कब कौन किसपे हमला करेगा या उस हथियार का इस्तेमाल करेगा।  अमेरिका के हिसाब से 26/9 के बाद ईतने बड़े तौर पे हुआ यह दूसरा हमला हैं जिसमे इतने लोगों की जान गयी हैं।  इससे पहले फ़्रांस में, लंदन में हुए हमलों को भी आतंकवादी हमले ही कहा जाता हैं।  इसलिए अब जरूरी हैं के हर देश जो इस आतंकवाद से परेशान हैं बल्कि विश्व के हर देश ने एक ऐसी मजबूत संघटना बनाई चाहीये जो के किसी भी आतंकवादी हमला हो उस के गुनहगारों को ढूंढके निकाले और उसे कड़ी से कड़ी सजा दे ताकि फिर ऐसी जुर्रत कोई भी कर ना सके।  

Monday, 13 June 2016

aaj ka cinema

आज का सिनेमा

       आज उड़ता पंजाब  इस फिल्म के कारण हमारे देश में हो रहा हो वह नई बात नहीं हैं ।  इसके पहले भी ऐसी बहोत सी फिल्मे आई है जिस पर कभी सेंसर बोर्ड ने तो कभी किसी राजनीतिक दल ने बंदी लगाने की मांग की हैं।  जब  सुचित्रा सेन और संजीव कुमार अभिनीत फिल्म आँधी आई थी तो उसे श्रीमति इन्दिरा गांधी जी के जीवन से जोड़कर बंद करने की मांग की गयी थी ।  प्रकाश झा की आरक्षण भी इसी के चलते विवाद में अटक गई थी ।  मराठी फिल्म झेडा (ज्येण्डा) भी इसी विवाद में अटक गयी थी ।  ऐसा नही है की इस तरह की फिल्मे जो की सामाजीक विषयों पे आधारीत थी उसे विवाद का सामना करना नहीं पड़ा ।  मराठी फिल्म सामना, सिंहासन, अभी आई हुई सुपरहिट मराठी फिल्म सैराट जिसे लोगों ने जाती धर्म के साथ जोड़ने की कोशिश की हैं।  ऐसा नहीं हैं के फिल्मे हमेशा समाज में घटने वाली बाते ही दिखती हैं वह कभी कभी कल्पना का सहारा भी लेती हैं।  किन्तु जो फिल्म रिऐलिटि याने सच्चाई दिखाते है उसे नकारते नहीं हैं।  कुछ सालों पहले आमिर खान की रेगिंग के उपर आधारीत फिल्म होली आई थी उसमे रेगिंग की सच्चाई दिखाई थी ।  समलेंगीकता के ऊपर मनोज बाजपई की फिल्म अलीगढ़ आई थी उसे भी विरोध हुआ था ।  अभी हाल में ही आई हुई हिन्दी फिल्म बाजीराव मस्तानी को भी आलोचना का सामना करना पड़ा था।  क्या ऐसे ही कला को विरोध करना कहा की समजदारी हैं।  इस तरह से हर चीज़ पर बंदी लगाते गए तो फिल्मो में क्या दिखाएंगे ।  कहते हैं की फिल्म सच्चाई का आईना होता हैं ।  तो उस आईने में हमने खुद को देखकर सुधार लिया तो क्या बुरा हैं।  हम अपने घर के आईने में ही देखकर खुद को सजाते सँवरते हैं ना ।  उसी में देखकर ही हम खुद को सही तरीके से सही ढंग से पेश करते हैं ।  तो फिल्मों में दिखाई गयी सच्चाई का सामना करने से क्यूँ कतराते हैं।  उड़ता पंजाब के विषय में अब बड़े बड़े सेलीब्रेटीयोने भी अपनी अपनी राय देने की शुरुवात की हैं।  किसी ने कहा हैं के सेंसर बोर्ड का काम सिर्फ सर्टिफिकेट देना है। बाकी फिल्म को पसंद या नापसंद करना दर्शकों का काम हैं। दूसरी तरफ कुछ लोगों का कहना हैं की इस तरह का विवाद फिल्म को पब्लिसिटी दिलाने के लिए भी किया जाता हैं।  खैर सब का अपना अपना मत और पसंद होती हैं।   यू U सर्टिफिकेट सब फिल्म देख सकते हैं इसलिए होता हैं, यूए U/A सर्टिफिकेट 12 साल के नीचे बच्चों के साथ उनके अभिभावक होना जरूरी हैं और ए A सर्टिफिकेट सिर्फ 18 साल के ऊपर के वयस्क ही इसे देख सकते हैं।  अब उड़ता पंजाब यह फिल्म ए सर्टिफिकेट के साथ पास हो गयी हैं।  सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने इसे 13 कट्स करके इसे सर्टिफिकेट दिया हैं।  और साथ में यह भी कहा हैं के निर्माता और दिगदर्शक आगे कोर्ट में भी जा सकते हैं।  

Friday, 10 June 2016

सेंसर बोर्ड

सेंसर बोर्ड

       किसी भी गलत चीज़ को समाज में बढ़ावा ना मिले और उससे देश का माहोल न बिगड़े इसका खयाल रखना पुलिस का काम होता हैं।  देश का खयाल रखना सरकार का काम होता हैं।  इसके लिए अलग अलग विभाग तथा संस्थाये बनी हैं।  उसी तरह फिल्मों के जरिये  समाज में अगर गलत चीज़ का प्रभाव बढ़ता हैं तो उसे रोकने के लिए सेंसर बोर्ड बना हैं।  सेंसर बोर्ड फिल्मों से आपत्ती जनक दृश्यों को हटाने के लिए निर्मातों को कहते हैं, ताकि उससे समाज में शांति बनी रहे।  किन्तु आज क्या हो रहा हैं।  आज हर कोई खुद ही सेंसर बोर्ड का काम कर रहा हैं।  जैसे कुछ साल पहले झेंडा इस मराठी फिल्म के बारे में हुआ था, जिस पर अलग अलग राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी सेंसर शिप लगाई थी।   इसी तरह माधुरी दीक्षित की आजा नचले फिल्म के एक गाने में एक विशिष्ट समाज का नाम आने पर आपति जताई थी जब उस गाने से उसका नाम निकाल दिया तब काही वह फिल्म पर्दे पर आई।  इसी तरह 70 के दशक में फिल्मों में कीस करना यानि चुंबन लेना दिखा ही नहीं सकते थे, वही आज इमरान हाशमी किसीग स्टार कहलाता हैं।  आज फिल्मों में चुंबन आम बात हो गयी हैं।  मतलब यह हैं की जो बात कुछ साल पहले निषिद्ध मानी जाती थी वही आज सही मानी जाती हैं।  इस बात का जिक्र इसलिए हो रहा हैं की आज कल उड़ता पंजाब इस फिल्म के बारे में हो रहा हैं।  सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी इस फिल्म के बारे में अनुकूल नहीं हैं।  वह इसके विरोध में हैं।  उन्होने इस फिल्म से पंजाब का नाम तथा जालंधर, अमृतसर, तरंतारण, अबेसर, और लुधियान इस नामों को कट सुझाया हैं।  यह फिल्म ड्रग्स पर आधारीत हैं।  ऐसे में इसमे इंजेक्शन लेना, ड्रग्स लेते समय के क्लोज़ यूपीएस, संवादो में आए हुए इलेक्शन, एमपी, एमएलए,पार्टी,पार्लियामेंट इस शब्दों पर भी ऐतराज जताया हैं।  निर्माता दिग्दर्शक अनुराग कश्यप ने कहा हैं की अगर इतने सारे कट्स किए तो फिल्म का आत्मा ही खत्म हो जायेगा।  अगर आपको यह फिल्म बच्चो के हिसाब से सही नहीं लग रही तो इससे ए सर्टिफिकेट दे सकते हैं।  किन्तु पहलाज निहलानी इस पर भी तैयार नहीं हैं।  अब यह मामला कोर्ट में पहोच चुका हैं।  लोगों ने क्या देखना चाहिए और क्या नहीं उसका फैसला खुद लोगों पर ही छोड़ देना चाहिए ।  जनता खुद समजदार होती हैं।  अगर उसे अच्छा लगा तो वह देखेगी अगर नहीं तो खुद ही नकारेगी।  किन्तु यही बात सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी को मंजूर नहीं हैं।  ऐसा नहीं हैं की यह समस्या सिर्फ पंजाब में ही हैं। यह तो सारे देश बल्कि हर देश में हैं।   लेकिन इसे सिर्फ एक प्रतिनिधिक तौर पर दिखाया गया हैं।  जिसमे पंजाब का नाम आया हैं।  अब देखते हैं की कोर्ट का फैसला क्या आता हैं।  किन्तु इस एक फिल्म को ब्यान  करने से क्या यह समस्या हल हो जाएगी।  निर्माता दिग्दर्शक अनुराग कश्यप ने तो इस सच्चाई को पर्दे पर लाने की एक कोशिश की हैं। क्या इस तरह की फिल्मे आई नहीं किन्तु अब कोर्ट में पहोचने के कारण यह मामला उलझता जा रहा हैं।  

Monday, 6 June 2016

ravindra jain

रवींद्र जैन
            ‘पुरवैया लेके चली मेरी नैया जाने कहा रे या अँखियों के झरोखे से मैंने देखा जो सांवरे ये गीत सुनते ही जो नाम जेहन में आता हैं वो हैं रवीद्र जैन।  आपका जन्म 28 फरवरी 1944 को अलीगढ़ उत्तर प्रदेश में हुआ। इनके पीता संस्कृत विद्वान और आयुर्वेदाचार्य पंडित इंद्रमनी जैन और माता किरण जैन।  इनका खानदान गारा, अलीगढ़ उत्तर प्रदेश में रहता था ।  इन्हे सात भाई और एक बहन । आपने 1972 में मोहम्मद रफी साहब की आवाज में पहला  फिल्मी गीत रेकॉर्ड किया था किन्तु वह गाना आजतक रिलीज नहीं हो पाया।  अगर उनकी पहली हिन्दी फिल्म देखी जाये तो वह थी राजश्री प्रोडकशन की सौदागर।  इनकी काफी फिल्मे इसी राजश्री प्रोडकशन की ही देन हैं।  आप जन्म से ही दोनों आंखों से अंधे थे।  किन्तु होनी को कौन टाल सकता हैं।  इन्हे सफल संगीतकार बनना था बन गये।  आपने जवानी से भजन गाना शुरू किया था।  1960 से ही इन्होने कलकत्ता से अपने फिल्मी करियर की शुरवात की ऐसा माना जाता है।  किन्तु सही मायने में इनकी फिल्मी करियर की शुरवात करीब 10 साल बाद हुई हैं।  आपके पिता की मृत्यु एक रिकॉर्डिंग के समय हुई थी किन्तु इन्होने अपने काम को ज्यादा महत्व दिया और रिकॉर्डिंग के बाद ही वह अपने पिता के अंतिम दर्शन को गये।  आपकी सफल फिल्मे- सौदागर (1970), चोर मचाए शोर  (1974), गीत गाता चल (1975), चितचोर (1976 ), दुल्हन वही जो पिया मन भाये  (1977), पहेली (1977) आणि अँखियों के झरोखे से (1978). नदिया के पार। (1982). राम तेरी गंगा मैली, हीना, पति पत्नी और वो(1978) , इंसाफ का तराज़ू (1980)।  आपने गैर हिन्दी फिल्मों में भी संगीत दिया हैं जैसे सुजाता, सुख़म सुखकरम, आकाशथिंते निराम (मलयालम), म्हारा पीहर सारा, कुनबा(हरियाणवी), चढि जवानी बूढ़े (पुंजाबी), सुशिक्षित बिनानी (राजस्थानी). पाटी परम गुरु (बंगाली); ब्रम्हर्षी  विश्वामित्र (तेलगु)।  आपने 1980 से 1990 के बीच धार्मिक फिल्मों को भी संगीत दिया हैं जिसमे नवरात्री , गोपाळ कृष्ण , जय करौली माँ , हर हर गंगे , दुर्गा माँ , बद्रीनाथ धाम , सोलह शुक्रवार  , 'राजा हरिश्चंद्र' , बोलो तो चक्रधारी  , शनिव्रत महिमा और जय शाकंभरी माँ .।  रवीद्र जैन जी ने मोहम्मद रफी जी के साथ काफी अच्छे गाने दिये हैं।  इसमे दादा, आखरी कसं बदमाश, राम भरोसे, रईसजादा, फकीरा,  दो जासूस और तूफान। 
      आपने किशोर कुमार के साथ भी काफी खूबसूरत गीत दिये हैं।  चोर मचाए शोर, सलाखें, दीवानगी,फकिरा जिसमे शशी कपूर हीरो थे।  संजीव कुमार के साथ पति पत्नी और वो और दासी।  आपने राजश्री प्रॉडक्शन के साथ काफी फिल्मे की हैं- विवाह, सौदागर (1970), चोर मचाए शोर  (1974), गीत गाता चल (1975), चितचोर (1976 ), दुल्हन वही जो पिया मन भाये  (1977), पहेली (1977) आणि अँखियों के झरोखे से (1978). नदिया के पार। (1982).। 
आपने आशा भोंसले के साथ 1980 में एक प्राइवेट एल्बम भी बनाया था ओम नमो शिवाय।  . 1990 एक अल्बम गुरू वंदना गुरू और संत और शिष्य प्रसिद्ध हुए।  आपने महात्मा गांधीजी की विचार धारा पर आधारीत  शाश्वत महात्मा  एल्बम 2011 में प्रसिद्ध किया।  जो की भारत और दक्षिण अफ्रीका में रिलीज हुआ। 

दूरदर्शन कारकीर्द

रवींद्र जैन जी ने अनेक दूरदर्शन सिरियल को संगीत दिया हैं जिसमे रामानंद सागर निर्मित दादा दादी की कहानियाँ, रामायण और लव कुश मुख्य हैं।  आपने हेमा मलिनी के सिरियल नूपुर को भी संगीत दिया हैं।  आपने काफी सीरियल्स को संगीत दिया हैं जैसे श्री कृष्ण, अलिफ लैला, इतिहास की प्रेम कहानियाँ, जय गंगा मैया, जय हनुमान, महाभारत।  आपने  सा रे ग म प चॅलेंज 2009 में जज की भूमिका भी निभाई हैं। 
आपको निम्मलिखित प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं जैसे- राजेश्वर  , सूर गायिका , फिल्मफेअर पुरस्कार , स्वामी हरिदास पुरस्कार , युवा राष्ट्रीय पुरस्कार , आशीर्वाद,  आधार शीला , अपट्रोन  , प्रियदर्शनी पुरस्कार, बंगाल चित्रपट पत्रकार 'संघटना पुरस्कार ,

आपका निधन उम्र के 71 वे साल में 9 ओक्टोबर 2015 में मुंबई में हुआ। इस महान संगीतकार को हमारी तरफ से श्रद्धांजली । 

Wednesday, 25 May 2016

घातक



घातक
       रोज खाओ पिज्जा रहो ताज़ा ताज़ा शायद यह बात अब गलत साबित होने वाली हैं।  पिज्जा , ब्रैड, पाव इनमे पॉटेश्यम ब्रोमेट  और पॉटेश्यम आइयोनेट जैसे खतरनाक घटक मिल रहे हैं।  यह ब्रैड , पिज्जा में इसे ताज़ा रखने के लिए तथा इसे ज्यादा दिन अच्छी स्थिती में रखने के लिए मिलाया जाता हैं।  किन्तु यही रासायनिक घटक शरीर को हानी पहुंचाते हैं।  इससे कैंसर, किडनी डिसीज होने की संभावना हैं।  केन्द्रीय आरोग्य मंत्री श्री जे पी नड़ड़ा जी ने कहा हैं की जनता को ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं हैं।  हम इस संदर्भ में जांच कर रहे हैं।  किन्तु इससे जनता घबराएंगी हि।  आज ऐसी कौनसी चीज हैं जिसमे मिलावट नही हैं।  कुछ दिनो पहले एक बड़ी कंपनी के नूडल्स में मिलावट पायी गयी थी।  नूडल्स बच्चों की पसंदीदा चीज होती हैं।  ऐसे में अगर ऐसी बात सामने आयी तो अभिभावकों का घबराना जायज हैं।  ब्रैड, पिज्जा तो बच्चे बड़े चाव से खाते हैं।  ऐसे में यह बात सामने आने से सबका डरना सही हैं।  सेंटर फॉर एनवायरनमेंट अँड साइन्स के तरफ से यह बात सामने आना चिंताजनक हैं।  यह संस्था बहोत सालों से यह बात सामने लाने की कोशिश कर रही थी किन्तु आज यह बात साबित हो गयी हैं।  पॉटेश्यम ब्रोमेट  और पॉटेश्यम आइयोनेट को काफी देशों में ब्यान हैं।  मतलब इसे मिलना गैरकानूनी हैं।  किन्तु हमारे देश में आज तक ईसपे बंदी नहीं आई हैं।  अब यह बात सामने आयी हैं तो अब कांसे कम इससे लोग जागृत होंगे और इस रासायनिक घटकों पे ब्यान लगेगा।