Wednesday, 25 May 2016

घातक



घातक
       रोज खाओ पिज्जा रहो ताज़ा ताज़ा शायद यह बात अब गलत साबित होने वाली हैं।  पिज्जा , ब्रैड, पाव इनमे पॉटेश्यम ब्रोमेट  और पॉटेश्यम आइयोनेट जैसे खतरनाक घटक मिल रहे हैं।  यह ब्रैड , पिज्जा में इसे ताज़ा रखने के लिए तथा इसे ज्यादा दिन अच्छी स्थिती में रखने के लिए मिलाया जाता हैं।  किन्तु यही रासायनिक घटक शरीर को हानी पहुंचाते हैं।  इससे कैंसर, किडनी डिसीज होने की संभावना हैं।  केन्द्रीय आरोग्य मंत्री श्री जे पी नड़ड़ा जी ने कहा हैं की जनता को ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं हैं।  हम इस संदर्भ में जांच कर रहे हैं।  किन्तु इससे जनता घबराएंगी हि।  आज ऐसी कौनसी चीज हैं जिसमे मिलावट नही हैं।  कुछ दिनो पहले एक बड़ी कंपनी के नूडल्स में मिलावट पायी गयी थी।  नूडल्स बच्चों की पसंदीदा चीज होती हैं।  ऐसे में अगर ऐसी बात सामने आयी तो अभिभावकों का घबराना जायज हैं।  ब्रैड, पिज्जा तो बच्चे बड़े चाव से खाते हैं।  ऐसे में यह बात सामने आने से सबका डरना सही हैं।  सेंटर फॉर एनवायरनमेंट अँड साइन्स के तरफ से यह बात सामने आना चिंताजनक हैं।  यह संस्था बहोत सालों से यह बात सामने लाने की कोशिश कर रही थी किन्तु आज यह बात साबित हो गयी हैं।  पॉटेश्यम ब्रोमेट  और पॉटेश्यम आइयोनेट को काफी देशों में ब्यान हैं।  मतलब इसे मिलना गैरकानूनी हैं।  किन्तु हमारे देश में आज तक ईसपे बंदी नहीं आई हैं।  अब यह बात सामने आयी हैं तो अब कांसे कम इससे लोग जागृत होंगे और इस रासायनिक घटकों पे ब्यान लगेगा।  

Tuesday, 24 May 2016

भारत के शास्त्रीय संगीतकार



भारत को शास्त्रीय संगीत की बड़ी परंपरा हैं।  इन महान हस्तियों ने देश की शान में चार चाँद लगा दिये हैं। इनकी वजह से भारतीय शास्त्रीय संगीत देश में भी नहीं विदेशों में भी काफी लोकप्रिय हो गया हैं। 
1) उस्ताद अली अकबर खान- सरोद में अपने हुनर से इन्होने काफी शोहरत तथा महारत हासिल की हैं।
2)  उस्ताद अमजद अली खान- 1945 में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे उस्ताद अमजद अली खान साहब ने
    सरोद में ऐसी महारत हासिल की हैं के इनके नाम के बिना सरोद अधूरा ही रहेगा। इनकी यह छट्वी पीढ़ी हैं।    
    आप बांगेश खानदान से संबंध रखते हैं जो सेनिया बांगेश संगीत स्कूल से संबन्धित हैं। 
3) हरिप्रसाद चौरसिया पंडित हरिप्रसाद चौरसिया दुनिया के जानेमाने बांसुरी वादक हैं।   आप ऐसी   
    शक्सीयत हैं जिन्होने बांसुरी को आम आदमी के बीच काफी लोकप्रिय किया हैं।  इन्होने शास्त्रीय संगीत के   
   सीमा से परे जाकर बांसुरी को जनसामान्य के बीच मशहूर किया हैं।  आपने तथा शिव कुमार शर्मा जी ने     
    मिलकर यश चोपड़ा की काफी फिल्मों में संगीत दिया हैं।  इनमे मुख्यता हैं सिलसिला, चाँदनी, लम्हे, विजय    
     इनके गीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। 
3)  एम एस सुब्बालक्ष्मी -  आप कर्नाटक संगीत की जानी मानी हस्ती हैं।  इन्हे भारत की बुलबुल Nightingale of  
     India भी कहा जाता हैं। इनके द्वारा गाये भजन्स इतने सुंदर होते थे की सुनने वाले मंत्रमुग्ध होकर किसी
  अलग दुनिया में जाते थे।  इनके द्वारा गाये भजन्स में इसी दैवी शक्ति होती थी की सुननेवाला साक्षात
  भगवान से बाते कर रहा हो ऐसा आभास होता था। 
4)   बिस्मिल्लाह खान जो शहनाई सिर्फ मौत के समय या व्यक्ति के आखरी समय में ही बजाई जाती थी उसे हर व्यक्ति के मन में लानेवाले बिस्मिल्लाह खान ही थे।  इन्होने शहनाई को लग्न मंडप से उठाकर बाकी वाद्यों के साथ राज़्मान्यता दिलाई हैं। 
5)   पंडित रवि शंकर – आप भारत के जाने माने शास्त्रीय संगीत कार हैं तथा आपकी विशेषता हैं सितार।  आपने कुछ फिल्मों में भी संगीत दिया हैं।  आपका भारतीय शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय करने में काफी योगदान रहा हैं।  आपने जॉर्ज हैरिसन के साथ मिलकर भारतीय शास्त्रीय संगीत को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय किया हैं। 
6)   पंडित शिव कुमार शर्मा-  संतूर का नाम लेते ही सबसे पहले जो नाम जेहन में आता हैं वो हैं पंडित शिव कुमार शर्मा।  आपकी विशेषता यह हैं की आप एक हाथ से संतूर बजने में महारत रखते हैं।  आपने हरिप्रसाद चौरसिया जी के साथ मिलकर काफी फिल्मों में संगीत दिया हैं। 
7)   झाकिर हुसैन -  आप जब अपने घुंगराले बालों के साथ तबले पर जो ठेका लगाते हैं तो सुननेवालों के हाथ
   अनायास ताली बजने के लिए मजबूर हो जाते हैं।  आपका और तबले का एक अनूठा रिश्ता बन गया हैं। 
9) आनंदा शंकर- आप देसी तथा विदेशी संगीत को इस तरह से एक दूसरे में घोलते हैं के सुननेवालों के चेहरे पे
   खुशी दौड़ आती हैं।  ईनका जन्म 11 दिसम्बर 1942 को उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा में मशहूर नर्तक आमला   
   और उदय शंकर जी के यहा हुआ।  आप मशहूर सितारवादक रवि शंकर जी के भतीजे हैं। 
10) पंडीत देबू चौधरी – इन्हे देबू के नाम से जाना जाता हैं जो सितार में काफी मशहूर हैं।  इन्हे भारत सरकार की
    तरफ से पद्मा भूषण अवार्ड भी दिया गया हैं। 
11) श्री लालगुडी जयरामा अय्यर – कर्नाटक संगीत में यह नाम वायलीन वादक के नाम से काफी मशहूर हैं। 
    इन्होने अपनी खुद की एक शैली बनाई हैं जिसके वजह से सुननेवाला एक तरह से उनके वादन से बंध जाता
    हैं। 
12) एल सुब्रमनीएम- एक मशहूर वायलीन वादक के नाम से इन्हे जाना जाता हैं।  इनकी कर्नाटक संगीत में काफी
    पकड़ हैं जो दक्षिण भारत तथा पश्चिमी ऑर्केस्ट्रा की बन्दिशों के लिए जाने जाते हैं। 
13) मुथुस्वामी दीक्षितर- 1775 में तमिलनाडू राज्य के तिरुवरूर में रामास्वामी दीक्षितर और सुबम्मा के घर जन्मे
    सबसे जेष्ठ पुत्र थे मुथुस्वामी। मुथुस्वामी दीक्षितर कर्नाटक संगीत के सबसे युवा संगीतकार माने जाते थे। 
14) स्वाथी थिरुनल – श्री स्वाथी थिरुनल रामा वर्मा त्रावणकोर राज्य के राजा थे जब इनकी मृत्यु हुई ।  इन्होने
    1829 से 1846 तक राज्य किया ।  उसी समय वह संगीत के उपासक और संरक्षक माने जाते थे, तथा वह
    एक अच्छे संगीतकार भी थे। 
15) मियां तानसेन- तानसेन जो राजा अकबर के नवरत्नों में से एक जाने जाते थे।  इन्हे भारतीय संगीत के जनक
    के तौर पे जाना जाता हैं।  कहते हैं वह जब दीपक राग गाते थे तो अपने आप दिये जलते थे और जब मेघ
    मल्हार गाते थे तब बारिश आती थी।  कहते हैं इन्हे भारतीय शास्त्रीय संगीत के उत्तर भारत के संगीत का
    ढांचा बनाने का केंद्र समझा जाता हैं।  मतलब इन्हे उत्तर भारतीय संगीत का केंद्र बिन्दु कहा जाता हैं। 
16) त्यागराजा -  कर्नाटकी संगीत का जिक्र आए और आप का नाम ना आए ऐसा हो नहीं सकता।  मुथुस्वामी
    दीक्षितर और स्यामा शास्त्री के साथ त्यागराजा जी की जोड़ी को  कर्नाटक संगीत की त्रिसुत्री कहा जाता हैं। 
17)  उस्ताद अल्लाऊद्दीन खान- आप को सरोद वादक के तौर par एक माहिर वादक के नाम से जाना जाता हैं।
     इनकी खासियत यह हैं के इन्हे सरोद के साथ साथ दूसरे वाद्यों में भी महारत हासिल हैं।  इन्हे पंडित रवि   
     शंकर और निखिल ब्यानेर्जी के गुरु के तौर पर जाना जाता हैं।  इन्हे बाबा अल्लाऊद्दीन खान के नाम से भी
     जाना जाता हैं।  आप अली अकबर खान और अन्नपूर्णा देवी के पिता थे। 
18) अन्नपूर्णा देवी- आपका जन्म रोशन आरा खान के यहा 1926 में मध्य प्रदेश के मैहर में हुआ।  आप को
    सुरबहार या बास सितार में महारत हासिल हैं।  आप के वालिद मशहूर सरोद वादक उस्ताद अल्लाऊद्दीन खान
    थे। 

            देश के इन्ही महान हस्तियों को शतशा नमन। 


Friday, 20 May 2016

अनमोल हीरा- लता मंगेशकर


अनमोल हीरा- लता मंगेशकर

        लता मंगेशकर ये नाम किसे पता नहीं।  इस नाम के सहारे बहोत से लोग फ़ेमस हो गए हैं। इसमे लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का नाम अग्रणी हैं।  लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जोड़ी ने जब सिनेमा में कदम रखने की चाह रखी तब उन्होने पहला सिनेमा किया पारसमणि जिसमे उन्होने फिल्म के सभी फ़ीमेल गाने लता जी से ही गवाए।  फिर वो हसता हुआ नूरानी चेहरा, ऊई माँ ऊई माँ ये क्या हो गया , ‘मेरे दिल में हल्की सी , चोरी चोरी जो तुमसे मिली या फिर वो जब याद आये बहोत याद आए जैसे गाने हो।  हर गीत ने धूम मचा दी थी।  कुछ संगीतकार जो के फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद भी मशहूर नहीं  हुए थे या वह एक हिट चाहते थे उन्हे भी लता जी की आवाज से मानो जैसे ऑक्सिजन मिल गया हो।  जब लता जी फिल्म इंडस्ट्री में आई थी तब उनकी आवाज बहोत पतली थी और तब यहा सुरैया, शमशाद बेगम, अमीर बाई करनाटकी, नूरजहा जैसी नासिका में गाने वाली गायिकाओं का जमाना था।  क्यूंकी तब ऐसे ही गाने को लोग पसंद करते थे।  ऐसे में इतनी पतली आवाज को कौन पसंद करते किन्तु उन्होने जो आपकी सेवा में (1947) फिल्म में संगीतकार वसंत जोगलेकर के संगीत निर्देशन से अपनी शुरुवात की तो आज तक वह गा ही रही हैं।  हाँ आज उन्होने गाने थोड़े कम कर दिये हैं किन्तु जब भी उनका कोई एक भी गाना आता हैं तो वह बाकी सब गानों में से अलग लगता ही हैं। 
       लता जी का जन्‍म 28 सितंबर 1929 को इंदौर के मराठी परिवार में पंडित दीनदयाल मंगेशकर के घर हुआ। इनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक भी थे इसलिए संगीत इन्‍हें विरासत में मिली। लता मंगेशकर का पहला नाम 'हेमा' था, मगर जन्‍म के 5 साल बाद माता-पिता ने इनका नाम 'लता' रख दिया था। लता अपने सभी भाई-बहनों में बड़ी हैं। मीना, आशा, उषा तथा हृदयनाथ उनसे छोटे हैं। इनके जन्‍म के कुछ दिनों बाद ही परिवार महाराष्‍ट्र चला गया।
       लता मंगेशकर ने अपने संगीत सफर की शुरुआत मराठी फिल्‍मों से की। इन्‍होंने मराठी फिल्‍म 'किती हसाल  (1942) के लिए एक गाना 'नाचुं या गडे, खेलूं सारी मनी हस भारी' गाया, मगर अंत समय में इस गाने को फिल्‍म से निकाल दिया गया। क्यूंकी उनके पिता फिल्मों में उनके गाने के खिलाफ थे।  इसके बाद मास्टर विनायक ने नवयुग चित्रपट की मराठी फिल्‍म 'पहली मंगला गौर' (1942) में कार्य किया और फिल्‍म में गाना 'नाली चैत्राची वलाई' गाया।  किन्तु इससे उन्हे सफलता नहीं मिल पायी।  लेकिन कहते हैं ना जो होना हैं वह तो होता ही हैं।  लता जी ने शुरुवात में फिल्मों में अभिनय भी किया।  किन्तु उनका रुझान गानो की तरफ ही था।  फिर दौर आया 1947 का।  1947 में लता जी एक ऐसा मौका मिला जिसके कारण उनकी जिंदगी ही बदल गई। यह मौका उन्हे फ़िल्म "महल" के "आयेगा आनेवाला" गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लताजी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह एक सुंदरता का तथा मधुरता का मिलन था जिसे खूब सराहा गया। लता जी एक ऐसी जीवित हस्ती हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिया जाता हैं यह पुरस्कार मध्य प्रदेश सरकार देती हैं।  लता जी को फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा पुरस्कार दादासाहेब फाल्के अवार्ड मिला हैं।  उन्होने 20 से अधिक भाषाओं में 30000 से ज्यादा गाने गाये हैं।  वह हमेशा नंगे पाँव ही गाना गाती है।  इसका मतलब वह आज भी गानों को पुजा समझकर गाती हैं।   लता जी ने कुछ सालों पहले से ही फिल्मफेयर पुरस्कार लेना बंद कर दिया है ताकि यह पुरस्कार आने वाली नई गायिकाओं को मिल सके।  इनकी  तरह गाने की नकल बहोत नई गायिकाओं ने की लेकिन वह सफल नहीं रही।  जिस तरह लता जी ने अपनी अलग पहचान बनाई उससे वह फिल्म इंडस्ट्री में माइलस्टोन बन गयी हैं।  इनको ना जाने किस किस उपाधि से नवाजा गया हैं कोई इन्हे गानकोकिला कहता है तो कोई स्वर की देवी कहता हैं।  उनकी आवाज को लेकर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी कह दिया कि इतनी सुरीली आवाज न कभी थी और न कभी होगी।  इस महान हस्ती को मेरा शत शत नमन।  बस आखिर में इतना ही कहना चाहूँगा
नींद से उठते हैं तेरी आवाज की झंकारों से
सोते भी है तेरी मधुर स्वरों के झूले में
जीवन का सफर करते हैं स्वरों की मदहोशी में
बस कट जाएँ यूंही स्वरों की आगोशी में।