Friday, 20 May 2016

अनमोल हीरा- लता मंगेशकर


अनमोल हीरा- लता मंगेशकर

        लता मंगेशकर ये नाम किसे पता नहीं।  इस नाम के सहारे बहोत से लोग फ़ेमस हो गए हैं। इसमे लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल का नाम अग्रणी हैं।  लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल जोड़ी ने जब सिनेमा में कदम रखने की चाह रखी तब उन्होने पहला सिनेमा किया पारसमणि जिसमे उन्होने फिल्म के सभी फ़ीमेल गाने लता जी से ही गवाए।  फिर वो हसता हुआ नूरानी चेहरा, ऊई माँ ऊई माँ ये क्या हो गया , ‘मेरे दिल में हल्की सी , चोरी चोरी जो तुमसे मिली या फिर वो जब याद आये बहोत याद आए जैसे गाने हो।  हर गीत ने धूम मचा दी थी।  कुछ संगीतकार जो के फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद भी मशहूर नहीं  हुए थे या वह एक हिट चाहते थे उन्हे भी लता जी की आवाज से मानो जैसे ऑक्सिजन मिल गया हो।  जब लता जी फिल्म इंडस्ट्री में आई थी तब उनकी आवाज बहोत पतली थी और तब यहा सुरैया, शमशाद बेगम, अमीर बाई करनाटकी, नूरजहा जैसी नासिका में गाने वाली गायिकाओं का जमाना था।  क्यूंकी तब ऐसे ही गाने को लोग पसंद करते थे।  ऐसे में इतनी पतली आवाज को कौन पसंद करते किन्तु उन्होने जो आपकी सेवा में (1947) फिल्म में संगीतकार वसंत जोगलेकर के संगीत निर्देशन से अपनी शुरुवात की तो आज तक वह गा ही रही हैं।  हाँ आज उन्होने गाने थोड़े कम कर दिये हैं किन्तु जब भी उनका कोई एक भी गाना आता हैं तो वह बाकी सब गानों में से अलग लगता ही हैं। 
       लता जी का जन्‍म 28 सितंबर 1929 को इंदौर के मराठी परिवार में पंडित दीनदयाल मंगेशकर के घर हुआ। इनके पिता रंगमंच के कलाकार और गायक भी थे इसलिए संगीत इन्‍हें विरासत में मिली। लता मंगेशकर का पहला नाम 'हेमा' था, मगर जन्‍म के 5 साल बाद माता-पिता ने इनका नाम 'लता' रख दिया था। लता अपने सभी भाई-बहनों में बड़ी हैं। मीना, आशा, उषा तथा हृदयनाथ उनसे छोटे हैं। इनके जन्‍म के कुछ दिनों बाद ही परिवार महाराष्‍ट्र चला गया।
       लता मंगेशकर ने अपने संगीत सफर की शुरुआत मराठी फिल्‍मों से की। इन्‍होंने मराठी फिल्‍म 'किती हसाल  (1942) के लिए एक गाना 'नाचुं या गडे, खेलूं सारी मनी हस भारी' गाया, मगर अंत समय में इस गाने को फिल्‍म से निकाल दिया गया। क्यूंकी उनके पिता फिल्मों में उनके गाने के खिलाफ थे।  इसके बाद मास्टर विनायक ने नवयुग चित्रपट की मराठी फिल्‍म 'पहली मंगला गौर' (1942) में कार्य किया और फिल्‍म में गाना 'नाली चैत्राची वलाई' गाया।  किन्तु इससे उन्हे सफलता नहीं मिल पायी।  लेकिन कहते हैं ना जो होना हैं वह तो होता ही हैं।  लता जी ने शुरुवात में फिल्मों में अभिनय भी किया।  किन्तु उनका रुझान गानो की तरफ ही था।  फिर दौर आया 1947 का।  1947 में लता जी एक ऐसा मौका मिला जिसके कारण उनकी जिंदगी ही बदल गई। यह मौका उन्हे फ़िल्म "महल" के "आयेगा आनेवाला" गीत से मिला। इस गीत को उस समय की सबसे खूबसूरत और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला पर फ़िल्माया गया था। यह फ़िल्म अत्यंत सफल रही थी और लता तथा मधुबाला दोनों के लिये बहुत शुभ साबित हुई। इसके बाद लताजी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह एक सुंदरता का तथा मधुरता का मिलन था जिसे खूब सराहा गया। लता जी एक ऐसी जीवित हस्ती हैं जिनके नाम से पुरस्कार दिया जाता हैं यह पुरस्कार मध्य प्रदेश सरकार देती हैं।  लता जी को फिल्म इंडस्ट्री का सबसे बड़ा पुरस्कार दादासाहेब फाल्के अवार्ड मिला हैं।  उन्होने 20 से अधिक भाषाओं में 30000 से ज्यादा गाने गाये हैं।  वह हमेशा नंगे पाँव ही गाना गाती है।  इसका मतलब वह आज भी गानों को पुजा समझकर गाती हैं।   लता जी ने कुछ सालों पहले से ही फिल्मफेयर पुरस्कार लेना बंद कर दिया है ताकि यह पुरस्कार आने वाली नई गायिकाओं को मिल सके।  इनकी  तरह गाने की नकल बहोत नई गायिकाओं ने की लेकिन वह सफल नहीं रही।  जिस तरह लता जी ने अपनी अलग पहचान बनाई उससे वह फिल्म इंडस्ट्री में माइलस्टोन बन गयी हैं।  इनको ना जाने किस किस उपाधि से नवाजा गया हैं कोई इन्हे गानकोकिला कहता है तो कोई स्वर की देवी कहता हैं।  उनकी आवाज को लेकर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी कह दिया कि इतनी सुरीली आवाज न कभी थी और न कभी होगी।  इस महान हस्ती को मेरा शत शत नमन।  बस आखिर में इतना ही कहना चाहूँगा
नींद से उठते हैं तेरी आवाज की झंकारों से
सोते भी है तेरी मधुर स्वरों के झूले में
जीवन का सफर करते हैं स्वरों की मदहोशी में
बस कट जाएँ यूंही स्वरों की आगोशी में।

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